Sunday, February 16, 2020

परमशक्ति

*यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।*
*तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ३०।

भगवान श्रीकृष्ण गीता में  कहते हैं कि जो सम्पूर्ण भूतों में अर्थात् सर्वत्र एवं सबके आत्म रूप मुझ वासुदेव को ही अर्थात परमात्मा को देखता है एवं परमात्मा के अन्तर्गत देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता। अर्थात स्वयं परमात्मा उनका ध्यान रखते हैं।

He who sees Me (the universal self) present in all beings, and all beings existing within Me, never loses sight of Me, and I never lose sight of him.

सर्वत्र परमशक्ति को अनुभव करें।

शुभ दिन हो।

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Saturday, February 15, 2020

कर्म

*ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।*
*भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया॥*
गीता : अध्याय १८, श्लोक ६१।

हमारे कर्मों के अनुरूप ईश्वर हमारे हृदय में अवस्थित हो कर हमारे शरीर रुपी यन्त्र को अपनी माया के माध्यम से चलाते रहते हैं।

The Omni dwells in our hearts and revolve our machine (body with the senses) according to our deeds by his allure.

शुभ दिन हो।

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Thursday, February 13, 2020

अभ्यास

*जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:।* 
*स हेतु: सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥*

पानी की एक एक बूंद भी निरंतर गिरने से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार धीरे धीरे अभ्यास करने से सब विद्याओं की प्राप्ति हो जाती है, एवम् थोड़ा थोड़ा करके ही धर्म और धन का संचय भी हो जाता है।

A pot is filled by tiny drops of water pouring regularly in it.
Similarly, regular little efforts make a person learned, wealthy and blissful.

निरंतर प्रयास करें।

शुभ दिन हो।

🌺🌹💐🙏🏼

Wednesday, February 12, 2020

गुणवान

*पात्रविशेषे न्यस्तं गुणान्तरं व्रजति  शिल्पमाधातुः।*
*जलमिव समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलतां  पयोदस्य।।*

वर्षा की बूंदें जब समुद्र में उत्पन्न सीपियों के अन्दर विशेष परिस्थिति में प्रवेश करती हैं तो कालान्तर में वह मोती बन जाती हैं। इसी प्रकार गुण ग्रहण करने की विशेष क्षमता वाले सामान्य व्यक्ति जब गुणी व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं तो वे भी गुणवान हो जाते हैं।

When rain drops enter inside ordinary sea shells during a particular auspicious time, they become pearl bearing shells.
Similarly, a complete change in the merits can occur in only those persons who are endowed with special qualities of acquiring virtues by coming in contact with virtuous and knowledgeable persons.

गुणीजनों का सानिध्य करें।

शुभ दिन हो।

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Tuesday, February 11, 2020

मंत्रणा

*यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं  वा मन्त्रितं परे।*
*कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते।।*

जिस व्यक्ति द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यों के बारे में मन्त्रणा (विचार) करने, निश्चय करने तथा उसके पश्चात क्रियान्वयन होने तक अन्य व्यक्ति कुछ भी नहीं जानते हैं, वही एक पण्डित कहलाता है।

A person, whose actions about a project undertaken by him are not known to others  during  the stages of  consultations, finalization, and implementation, and it is known only when it is completed, is truly called a learned person.

शुभ दिन हो।

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Monday, February 10, 2020

उद्देश्य

*ओछो काम बड़े करैं, तौ न बड़ाई होय।*
*ज्‍यों रहीम हनुमंत को, गिरधर कहै न कोय॥*

लघु उद्देश्य हेतु अकारण ही कुछ बड़ा दिखायी देने वाला कार्य कर देने से शक्तिवान एवं गुणीजनों का बड़प्पन नहीं है, जिस प्रकार हनुमानजी द्वारा पर्वत उठा लेने पर भी यह जग कृष्ण के समान गिरधारी नहीं कहता।

Just doing something big by intellects for a little objective doesn't matter, likewise _Hanuman_ is not called _Girdhari_ (one who lift a hill) even though he brought the whole mountain instead of some plants. 

शुभ दिन हो।

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Saturday, February 8, 2020

श्री राम

*बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।*
*अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥*
*संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।*
*बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥*

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में संत हृदय को नमन करते हुए उनकी विशेषताओं के बारे में कहते हैं, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं, वैसे ही संत हृदय शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।
संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानते हुए  विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा करके श्री रामजी के चरणों में अर्थात परम् तत्व में प्रीति दें॥

The noble person keeps his heart unaltered, he has neither friends nor foes. Treats all in the same manner. The author _Goswami Tulsidas_ praises this characteristics and requests all these noble persons to bestow him the devotion to the Almighty.

शुभ दिन हो।

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Friday, February 7, 2020

सार

*भरत बिनय सादर सुनिअ, करिअ बिचारु बहोरि।*
*करब साधुमत लोकमत, नृपनय निगम निचोरि॥*
रामचरितमानस : अयोध्याकांड।

ऋषि वशिष्ठ श्री राम को प्रथम अनुज भरत की विनती को आदरपूर्वक सुन कर उस पर विचार करने को कहते हैं। साथ ही साधुमत, लोकमत, राजनीति और वेदों का सार भी ध्यान में रखकर निर्णय लेने का परामर्श देते हैं।

Sage Vasishth advised  to Ram to listen first to Bharat's request respectfully and then think over it.
He also advised to take in consideration the views of Sadhus, public, King's duties and then the Vedas, before take a decision.

देश की राजधानी में आज 70 विधान सभा क्षेत्रों में होने वाले चुनाव में भली प्रकार विचार कर मतदान करें।

*मतदान अवश्य करें।*

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Thursday, February 6, 2020

परमसत्ता

*सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।* *गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥*
*अगुन अरूप अलख अज जोई।* *भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*

रामचरितमानस में परम सत्ता के सगुण और निर्गुण (निराकार एवं साकार) रूप में कोई भेद नहीं बताया है।
परम सत्ता, जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण करती है। 
अर्थात् भावना की प्रखरता सूक्ष्म चेतना को स्थूल स्वरूप में अवतरित कर देती है।

In the form of saguna and nirguna (formless and true) of supreme power, there is not described any distinction.

The supreme power, which is Nirguna, Arup (formless), Alakh (latent) and unborn, holds the Saguna form due to love for the devotees. 
*The intensity of the perception and belief transforms the subtle consciousness into a gross form.*

शुभ दिन हो।

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Wednesday, February 5, 2020

आत्म प्रवचन

*परैरुक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।*
*इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणै:।।*
                                    
यदि अन्य जन किसी व्यक्ति को गुणवान कहते हैं तो वह व्यक्ति गुणहीन होते हुए भी गुणवान समझा जाता है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही अपने गुणों का वर्णन करता है तो चाहे स्वयं देवताओं के राजा इन्द्र ही हों, वह अपनी गरिमा खो देता है।

If people treat someone as virtuous, in spite of his being without any virtuous, he is treated as a virtuous person. But if someone declares himself as a virtuous person, he loses his dignity, even if he may be Indra, the king of Gods.

आत्म प्रवंचना से बचें।

शुभ दिन हो।

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