Saturday, February 8, 2020

श्री राम

*बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।*
*अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥*
*संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।*
*बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥*

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में संत हृदय को नमन करते हुए उनकी विशेषताओं के बारे में कहते हैं, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं, वैसे ही संत हृदय शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।
संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानते हुए  विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा करके श्री रामजी के चरणों में अर्थात परम् तत्व में प्रीति दें॥

The noble person keeps his heart unaltered, he has neither friends nor foes. Treats all in the same manner. The author _Goswami Tulsidas_ praises this characteristics and requests all these noble persons to bestow him the devotion to the Almighty.

शुभ दिन हो।

🌹🌺💐🙏🏻

Friday, February 7, 2020

सार

*भरत बिनय सादर सुनिअ, करिअ बिचारु बहोरि।*
*करब साधुमत लोकमत, नृपनय निगम निचोरि॥*
रामचरितमानस : अयोध्याकांड।

ऋषि वशिष्ठ श्री राम को प्रथम अनुज भरत की विनती को आदरपूर्वक सुन कर उस पर विचार करने को कहते हैं। साथ ही साधुमत, लोकमत, राजनीति और वेदों का सार भी ध्यान में रखकर निर्णय लेने का परामर्श देते हैं।

Sage Vasishth advised  to Ram to listen first to Bharat's request respectfully and then think over it.
He also advised to take in consideration the views of Sadhus, public, King's duties and then the Vedas, before take a decision.

देश की राजधानी में आज 70 विधान सभा क्षेत्रों में होने वाले चुनाव में भली प्रकार विचार कर मतदान करें।

*मतदान अवश्य करें।*

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Thursday, February 6, 2020

परमसत्ता

*सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।* *गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥*
*अगुन अरूप अलख अज जोई।* *भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*

रामचरितमानस में परम सत्ता के सगुण और निर्गुण (निराकार एवं साकार) रूप में कोई भेद नहीं बताया है।
परम सत्ता, जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण रूप धारण करती है। 
अर्थात् भावना की प्रखरता सूक्ष्म चेतना को स्थूल स्वरूप में अवतरित कर देती है।

In the form of saguna and nirguna (formless and true) of supreme power, there is not described any distinction.

The supreme power, which is Nirguna, Arup (formless), Alakh (latent) and unborn, holds the Saguna form due to love for the devotees. 
*The intensity of the perception and belief transforms the subtle consciousness into a gross form.*

शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏼

Wednesday, February 5, 2020

आत्म प्रवचन

*परैरुक्तगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।*
*इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणै:।।*
                                    
यदि अन्य जन किसी व्यक्ति को गुणवान कहते हैं तो वह व्यक्ति गुणहीन होते हुए भी गुणवान समझा जाता है। परन्तु यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही अपने गुणों का वर्णन करता है तो चाहे स्वयं देवताओं के राजा इन्द्र ही हों, वह अपनी गरिमा खो देता है।

If people treat someone as virtuous, in spite of his being without any virtuous, he is treated as a virtuous person. But if someone declares himself as a virtuous person, he loses his dignity, even if he may be Indra, the king of Gods.

आत्म प्रवंचना से बचें।

शुभ दिन हो।

💐🌹🌺🙏🏻

Tuesday, February 4, 2020

विवेक

*सुख हरषहिं जड़ दु:ख बिलखाहीं।*
*दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं॥*
*धीरज धरहु बिबेकु बिचारी।*
 *छाड़िअ सोच सकल हितकारी॥*
रामचरित मानस : अयोध्या काण्ड।

सुख में हर्षित होना और दुःख में रोना, जड़मति अर्थात मूर्ख जन करते हैं, परन्तु धीर पुरुष अपने मन में दोनों को समान समझते हैं। 

विवेक पूर्ण विचार कर धीरज रख कर चिंता का त्याग सभी प्रकार से हितकारी होता है।

To be happy in joy and crying in sorrow, is foolish, but the men who are patient consider both joy and sorrow equal in their mind.

Considering with patience in all situations and avoiding anxiety is beneficial in all respects.

धीरज रखें।

शुभ दिन हो।

🌹🌺💐🙏🏼

Sunday, February 2, 2020

सज्जनता

*जग बहु नर सर सरि सम भाई।*
*जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥*
*सज्जन सकृत सिंधु सम कोई।* 
*देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड

In this world the most of the people are as of ponds and rivers which please while they get more. But very few are like the sea which high tides to see the full moon means become happy to see others prosperity.

इस जगत में तालाबों और नदियों के समान जल पाकर अपनी ही बाढ़ से बढ़ने वाले मनुष्यों की संख्या ही अधिक है, अर्थात्‌ अपनी ही उन्नति से प्रसन्न होने वाले अधिक हैं।
समुद्र के जैसा चन्द्रमा को पूर्ण देखकर, अर्थात दूसरों का उत्कर्ष देखकर उमड़ पड़ने वाला तो कोई एक बिरला ही सज्जन होता है।

ईर्ष्या से बचें, सज्जन बनें।

शुभ दिन हो।

🌺🌻💐🙏

Saturday, February 1, 2020

संत असंत

*बंदउँ संत असज्जन चरना।* *दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥*
*बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं।* *मिलत एक दु:ख दारुन देहीं॥*
*उपजहिं एक संग जग माहीं।* *जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं॥*
*सुधा सुरा सम साधु असाधू।* *जनक एक जग जलधि अगाधू॥*
रामचरित मानस : बालकाण्ड

संत और असंत दोनों के वन्दन की सीख देते हुए तुलसीदास जी कहते हैं, दोनों ही दुःख देने वाले हैं, परन्तु उनमें इतना अन्तर है कि एक (संत) बिछुड़ते समय प्राण हर लेते हैं और दूसरे (असंत) मिलते हैं, तब दारुण दुःख देते हैं। अर्थात्‌ संतों का बिछुड़ना मरने के समान दुःखदायी होता है और असंतों का मिलना।
दोनों (संत और असंत) जगत् में साथ पैदा होते हैं, पर कमल और जोंक की तरह उनके गुण अलग-अलग होते हैं। कमल दर्शन और स्पर्श से सुख देता है, किन्तु जोंक शरीर का स्पर्श पाते ही रक्त चूसने लगती है। साधु अमृत के समान और असाधु मदिरा के समान (मोह, प्रमाद और जड़ता उत्पन्न करने वाला) है, दोनों को उत्पन्न करने वाला जगत् रूपी अगाध समुद्र एक ही है।

The Good and Evil has similar origin that is this world but their basic characteristics are different like nector and wine. Both bless us with grief, Good while detached and Evil on meet.

अच्छे एवम् बुरे में भेद समझें।

शुभ दिन हो।

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Thursday, January 30, 2020

बुद्धिमत्ता

*न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।*
*अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥*

कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है।

No one knows what is going to happen tomorrow. So doing all of tomorrow's task today is a signature of wise.

शुभ दिन हो।

🌸🌹💐🙏🏼

Wednesday, January 29, 2020

मन

*केवलं ग्रह नक्षत्रं न करोति शुभाशुभं।*
*सर्वमात्रकृतं कर्मं लोकवादो ग्रहा इति।।*

किसी व्यक्ति के जीवन में शुभ और अशुभ घटनाएँ उसके द्वारा किये हुए कर्मों से होती हैं और केवल ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव से नहीं होती हैं।
समाज में व्याप्त यह एक गलत धारणा मात्र है।

रामचरितमानस में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है: 

*कादर मन कहुँ एक अधारा।*
*दैव दैव आलसी पुकारा।।*

यह दैव तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं।

Auspicious and inauspicious events in the life of men occur due to their actions and not simply due to influence of planets and stars as is the wrong perception in the society.
We should not leave every thing to the fate but perform virtuous deeds in our life.

शुभ दिन हो।

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Monday, January 27, 2020

कर्म

*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।*
*मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।*
गीता : अध्याय 2 श्लोक 47

*निज कर क्रिया रहीम कहि, सिधि भावी के हाथ। *
*पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ॥*

मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में ही है, उसके परिणामों में कभी नहीं। 
अतः हम कर्मों के परिणाम का हेतु न बनें तथा हमारी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो।

A MAN has right to work only, but never to the result thereof. 
So be not instrumental in making our actions bear results, nor let our attachment be to inaction.

शुभ दिन हो।

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