*जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं,*
*प्रेम गली अति साँकरी, ता में दो न समाहिं।*
कबीर जी ने परम की प्राप्ति हेतु स्वयं के पूर्ण समर्पण की व्याख्या करते हुए कहा है कि मैं अर्थात अपने अहम को जब तक नहीं हटाते, उस परम की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि यह राह बहुत संकरी है इसमें केवल एक ही परम अथवा अहम ही समा सकते हैं।
Saint KABIR has explained the way to find Almighty by eliminating self with an example of a very narrow passage of love through which only one can pass either self or Almighty.
*अहम त्याग दें, मास अहम है,*
*सावन में शिव शक्ति परम है,*
*गुरु की शिक्षा साथ सदा हो,*
*संचित कर लें जो भी कम है।*
आज से प्रारम्भ शिव आराधना के श्रावण मास में स्वास्थ्य साधना करें।
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