*नाथ सुहृद सुठि सरल चित, सील सनेह निधान।*
*सब पर प्रीति प्रतीति जियँ, जानिअ आपु समान॥*
रामचरित मानस : अयोध्या काण्ड।
परम सत्ता की विशेषताएँ बताते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि हे नाथ! आप परम सुहृद् (बिना ही कारण परम हित करने वाले), सरल हृदय तथा शील और स्नेह के भंडार हैं, आपका सभी पर प्रेम और विश्वास है, और अपने हृदय में सबको अपने ही समान जानते हैं।
The Almighty has supreme and simple heart full of modesty and affection, and also has love and faith in all knowing everyone.
*परम दया के हैं आगार,*
*करुणा के अतिशय भण्डार,*
*हितकारी हम सबके हैं,*
*नित्य परम को नम: कार।*
No comments:
Post a Comment