साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को आसानी से समझ सकते हैं।
*न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां॥*
*न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥*
रुद्राष्टकम : उत्तर कांड, रामचरितमानस।
हे उमानाथ जब तक आपके चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक न तो इहलोक और परलोक में सुख-शांति मिलती है और न उनके तापों का नाश होता है। अतः हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले हे प्रभो! प्रसन्न होइए॥
O _Umanath_ unless we worship you, we can't get peace in this world or either elsewhere. Kindly be pleased on us as you reside in the hearts of all of us.
आज श्रावणी शिवरात्रि पर आएँ हम उस निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।
*शिव को भज लें, जानें हम,*
*शक्तिवान शिव मानें हम,*
*भक्ति शक्ति से स्वस्थ रहें,*
*परम स्वयं पहचानें हम।*
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