*सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।*
*वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।*
आवेश में आ कर बिना सोचे समझे कोई कार्य नहीं करना चाहिए।
विवेकशून्यता बड़ी विपत्तियों का द्वार है।
जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |
One should not indulge in action in a hurry.
Indiscretion becomes a step towards extreme troubles.
Glory (good results) always enticed by virtuosity prefer one who exercises discretion.
*विवेक साथ हो सदा,*
*निभाएँ हरेक कायदा,*
*न योग दूर हो कभी,*
*मिले हरेक फ़ायदा।*
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