साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
रुद्राष्टकम् का पंचम श्लोक :
*प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।*
*त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥5॥*
प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दुःखों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूलधारी, भाव मात्र से प्राप्त होने वाले, हे भवानी पति श्री शंकरजी, आपको मैं भजता हूँ।
Obstreperous (Rudrarupa), Majestic, Brilliant, Immortal, Unborn, Bright like crores of suns, Eliminator of all three types of Shulas (Sorrows), Holding Trishul in hand, to be attained through Bhava (love) only, I worship O, Bhavanipati Shankar.
महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर आएँ हम निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।
*शिव एवं सती के महामिलन के पर्व महाशिवरात्रि की कोटि कोटि शुभकामनाएँ।*
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