*उद्धरेत् आत्मनात्मानं नात्मानम् अवसादयेत्।*
*आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ५।
हम स्वयं अपने द्वारा अपना उद्धार करें एवं स्वयं को अधोगति अथवा अवसाद में न डालें क्योंकि हम स्वयं ही स्वयं के मित्र अथवा शत्रु होते हैं।
We should raise ourselves self by our own efforts and should not degrade ourselves; as we only are our own friend or foe.
*स्वयं संयम एक उपचार,*
*स्वयं करें स्व का उद्धार।*
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