*आगें कह मृदु बचन बनाई।*
*पाछें अनहित मन कुटिलाई॥*
*जाकर चित अहि गति सम भाई।*
*अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥*
रामचरित मानस : अरण्य काण्ड।।
मित्र की विशेषताएँ बताते हुए प्रभु श्री राम कुछ मित्रों से दूर रहने की सीख देते हुए कहते हैं कि,
जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई! जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है।
The one who praise with gentle speech before us and vomits venom behind our back and has a crooked mind. Such friends, whose mind is crooked like a snake, it is better to abandon that friend.
चाटुकार मित्रों से बचें।
शुभ दिन हो।
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