*तस्मात् असक्त: सततं कार्यं कर्म समाचार।*
*असक्त: अाचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष:।।*
गीता : अध्याय ३, श्लोक १९।
ज्ञानी पुरुष के समान फल की अपेक्षा नहीं रखते हुए, फल की आसक्ति छोड़ कर अपना कर्त्तव्य कर्म सदैव करें; क्योंकि आसक्ति छोड़ कर कर्म करने वाले मनुष्य को परमगति प्राप्त होती है।
By efficiently doing his duties without attachment or doing work without attachment, a man attains the supreme.
शुभ दिन हो।
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