*मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥*
*जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥*
निशिचरों अर्थात् असुरों की पहचान बताते हुए रामचरितमानस में तुलसीदास जी बताते हैं कि जो अपने माता पिता को ईश्वर तुल्य नहीं मानते और साधुओं एवं सज्जन पुरुषों (की सेवा करना तो दूर, उल्टे उन) से सेवा करवाते हैं, ऐसे आचरण के सब प्राणियों को राक्षस ही समझना चाहिए।
Persons who do not respect their parents and guardians and do not serve nobles, saints are to be considered as devils.
माता पिता एवं गुरुओं का सम्मान करें।
शुभ दिन हो।
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