Wednesday, October 16, 2019

उपदेश

*उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।*
*पयः पान भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनं।।*

मूर्खों  का क्रोध उन्हें उपदेश देने से शान्त नहीं होता है वरन् और अधिक बढ़ जाता है और वे उपदेश देने वाले को ही हानि पँहुचा सकते हैं। जिस प्रकार कि सांपों को दूध पिलाने से केवल उनके विष की ही वृद्धि होती है।

The anger of foolish persons can not be subdued by preaching them (but on the contrary increases and may harm the preacher), just like a snake being fed with milk, which will results only in increase of its poison.

अपने जीवन साथी के स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन हेतु कठोर तपस्या के पर्व *करवा चौथ* पर ईश्वर मनोकामना पूर्ण करें।
अशेष शुभकामनाएँ।

शुभ दिन हो।

💐🌸🌹🙏🏼

Tuesday, October 15, 2019

क्रूरता

*सर्प क्रूर खलः क्रूरः, सर्पात् क्रूरतरः खलः।*
*सर्पः शाम्यति मन्त्रैश्च दुर्जनः केन शाम्यति॥*

साँप भी क्रूर होता है और दुष्ट भी क्रूर होता है, किन्तु दुष्ट साँप से अधिक क्रूर होता है। क्योंकि साँप के विष का तो मन्त्र से शमन हो सकता है, किन्तु दुष्ट के विष का शमन किसी प्रकार से नहीं हो सकता।

The serpent is cruel and the wicked is cruel too, but the wicked is more cruel than the serpent. Because snake venom can be suppressed by mantra, but the poison of the wicked can not be cured.

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏🏼

Monday, October 14, 2019

सम्मान

*प्रावृषेन्यस्य मालिन्यं, दोषः कोऽभीष्टवर्षिण:।*
*शरदाऽभ्रस्य शुभ्रत्वं, वद  कुत्रोपयुज्यते।।*

कौन कहता है कि वर्षा ऋतु में बादलों का कालापन उनका एक दोष है? उनसे तो  जलवृष्टि की ही कामना की जाती है। भला शरद ऋतु के शुभ्र (सफ़ेद) बादलों की क्या उपयोगिता है?

Who says that the dark blackness of the rain clouds is their defect? Every one expects rain from them. On the other hand what is the usefulness of pure white clouds of the autumn season?

सम्मान गुणों का करें, रंग रूप का नहीं।

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏🏼

Sunday, October 13, 2019

अविनीत

*अविनीतस्य या विद्या सा चिरं नैव तिष्ठति।*
*मर्कटस्य गले बद्धा मणीनां मालिका यथा।।*

अविनीत (दुष्ट और दुर्व्यवहार् करने वाले) व्यक्ति द्वारा अर्जित विद्या उसके पास चिरकाल तक वैसे ही नहीं रह सकती है जिस प्रकार एक बंदर के गले में पडी हुई मणियों की माला उसके द्वारा शीघ्र नष्ट कर दी जाती है।
(एक बन्दर को हार के मूल्यवान होने का कोई ज्ञान नहीं होता है और वह उसका सदुपयॊग करने के बदले उसे देर सवेर नष्ट कर देता है। और यही हाल दुष्ट व्यक्ति द्वारा प्राप्त विद्या का भी होता है।)

The knowledge and learning earned by a wicked and rude person does not stay with him for a long time just like a necklace studded with precious stones put on the neck of a monkey.
(A monkey does not know the value of a necklace studded with precious stones and sooner or later breaks it and throws it, and so is the case of the knowledge acquired by a wicked person.)

शुभ दिन हो।

🌸🌹💐🙏🏼

Saturday, October 12, 2019

शरद पूर्णिमा

*कर्मायत्तं फलं पुसां बुध्दि: कर्मानुसारिणी।*
*तथापि सुधियश्चाऽर्या: सुविचार्यैव कुर्वते॥*

मनुष्यों को फल कर्म के अनुसार मिलता है और बुध्दि भी कर्मों के अनुसार ही चलती है, फिर भी विद्वान और सज्जन भली भांती सोच विचार कर ही किसी कार्य को करते है।

Man gets results according to their deeds and their intellect also works according to their deeds, though the learned and noble persons do any work after proper thoughts.

अमृत वर्षा एवं महारास का यह पर्व *शरद पूर्णिमा, रास पूर्णिमा एवं कोजागरी पूर्णिमा* के नाम से जाना जाता है, हम सभी पर अमृत बरसे ऐसी शुभकामनाओं के साथ,

शुभ दिन हो।

💐🌸🌹🙏🏼

जय श्री राम

आज आपको एक ऐसे कथा के बारे में बताने जा रहा हूँ,,

जिसका विवरण संसार के किसी भी पुस्तक में आपको नही मिलेगा,,
जय श्री राम, जय श्री राम,,

कथा का आरंभ तब का है ,,

जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,
की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,
उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,,

और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,

सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस ( वरदान द्वारा प्राप्त ) पुत्र हैं,,

और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,

बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,

रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,

अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,

और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,

अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,

हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,,

अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,

एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,

और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,

इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,,

संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,

बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,

और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,

हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,
फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,
अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,
इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,

तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,,

क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,,
उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,

इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,

और राम नाम का जाप कर,,
इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,,
और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,

इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,
जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,,

और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,,

जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,

और जिस राम की तू बात कर रहा है,
वो है कौन,

और केवल तू ही जानता है राम के बारे में,

मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना,

और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,

हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,
उनकी महिमा अपरंपार है,
ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,

बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,
मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,

बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,

हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,,
तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,

बाली- तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,,

हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,

बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,,

अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,,
तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,

ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,,
मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,,

और युद्ध के लिए न जाओ,

हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,
बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,,
परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,
अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,

तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,
केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,
युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,

हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,,

उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,

और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,

पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,

हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,,

ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,

उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,

बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,

बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,
उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,
बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,

बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,

तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,

बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,
वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,

सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,,

कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है,

हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,
फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,

मुझे कुछ समझ नही आया,,

ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,

बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,,
ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,,
पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,

ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,

मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,,

सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,

इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,

और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,

ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,
क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,

ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,
मुझे क्षमा करें,,

और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया,,

तो बोलो,
पवनपुत्र हनुमान की जय,
जय श्री राम जय श्री राम,,

        🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹

*कृपया ये कथा जन जन तक पहुचाएं,और पुण्य के भागी बने,,जय श्री राम जय हनुमान🙏🙏*

*🙏राम राम जी🙏*

Friday, October 11, 2019

स्वभाव

*अकस्मादेव कुप्यन्ति प्रसीद्न्त्यनिमित्ततः।*
*शीलमेतद्साधूनामभ्रं पारिप्लवं यथा।।*

दुष्ट और नीच व्यक्ति अचानक ही क्रोधित हो जाते हैं और बिना किसी कारण के प्रसन्न भी हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव आकाश में छाये हुए बादलों की तरह अनिश्चित और चञ्चल होता है।

Mean and wicked persons suddenly become very angry and also become pleased without any valid reason. Their nature is very unpredictable like the movement of clouds in the sky.

शुभ दिन हो।

💐🌸🌹🙏🏼

Thursday, October 10, 2019

सुख एवं दुःख

*हर्षस्थान सहस्राणि भयस्थान शतानि च।*
*दिवसे दिवसे मूढं आविशन्ति न पण्डितम्।।*

मनुष्य जीवन में हर्ष या सुख की परिस्थितियाँ हजारों की संख्या में और भय एवं दु:ख की परिस्थितियाँ सैकड़ों की संख्या में दिन प्रतिदिन आती रहती हैं, मूढ़ (अज्ञानी) व्यक्ति आजीवन इन्हीं में उलझे रहते हैं परन्तु विद्वान और ज्ञानी व्यक्ति इन परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होते हैं।

There are thousands of occasions of happiness and rejoicing; hundreds of occasions of fear and unhappiness occurring daily in peoples' lives. Those who are ignorant fall prey (remain entangled) to such happenings, but not so in the case of enlightened and learned persons.

जीवन चक्र में सुख एवं दुःख अवश्यम्भावी है।

शुभ दिन हो।

🌸🌺🌹🙏🏻

Wednesday, October 9, 2019

हितोपदेश

*उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे नरे।*
*पश्य वानर मूर्खेण सुगृही निगृही कृता।।*

किसी मूर्ख एवं अनजान व्यक्ति को बिना माँगे कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए। संस्कृत के प्रसिद्ध ग्रन्थ हितोपदेश में वर्णित एक वानर और बया पक्षी की कहानी में एक मूर्ख वानर ने एक बया को उसका घोंसला तोड़ कर गृह विहीन कर दिया क्योंकि उसने वानर को तेज़ वर्षा में यहाँ वहाँ शरण ढूँढने पर घर बनाने की सलाह दी थी।

One should never preach or give guidance without being asked for to unknown and foolish persons.
In a story from HITOPDESH, a monkey destroyed a beautiful abode of a weaving bird listening her advise to make home his own while the bird sees it searching shelter during the rain.

शुभ दिन हो।

💐🌸🌹🙏🏼

Tuesday, October 8, 2019

नव दिवस

*न हि वैरेण वैराणि शाम्यन्तीह कदाचन।*
*अवैरेण हि शाम्यन्ति एष धर्मः सनातनः।।*

इस संसार में वैर (वैमनस्य) का प्रतिकार वैर से करने से वैर का अन्त कभी भी नहीं होता है। उसका अन्त तो केवल वैर न कर सद्भाव पूर्ण व्यवहार से  ही संभव है,
यही सनातन धर्म है।

Enmity can not be put to an end by countering it with enmity. It can end only by not observing enmity but by courteous behaviour. This is the eternal practise.

शुभ दिन हो।

💐🌸🌹🙏🏼