Monday, August 29, 2022

निंदा

*तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।*
*तिनके मुंह मसि लागिहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।*

जो लोग दूसरों की निन्दा करके, अपमान करके स्वयं सम्मान पाना चाहते हैं। ऐसे लोगों के मुँह पर ऐसी कालिख लगती है, जो लाखों बार धोने से भी नहीं हटती है।

Those who want to get respect for themselves by insulting others, will be stigmatized, which can't be washed out.

*पर निंदा से दूर रहें हम,*
*आलोचक से नहीं डरें हम,*
*स्व में स्थित स्वस्थ बनें हम,*
*निर्भय स्वस्थ बनें विचरें हम।*

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