*ये पायवो मामतेयं ते अग्ने, पश्यन्तो अन्धं दुरितादरक्षन्।*
*ररक्ष तान्त्सुकृतो विश्ववेदा, दिप्सन्त इद्रिपवो नाह देभुः।।*
ऋग्वेद : प्रथम मण्डल।
परोपकार और परमार्थ के कार्यों में निंदा, लांछन, उपहास आदि का भय नहीं करना चाहिए। ऐसे मनुष्यों की रक्षा स्वयं परमात्मा करता है। अतः निश्चिंत होकर लोक - कल्याण में लगे रहना चाहिए।
While doing charity and welfare for others, one should not bother about condemnation, to be ridiculed or taunted, as Almighty himself do care for him. So we should do noble deeds freely.
परहित में जब हम जीते,
कभी नहीं रहते रीते,
ध्यान हमारा ईश्वर रखते,
स्वस्थ मस्त जीवन बीते।
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