*उपभोग कातराणां पुरुषाणामर्थसंचयपराणां।*
*कन्यामणिरिव सदने तिष्ठत्यर्थ: परस्यार्थे।।*
अपने परिश्रम द्वारा संपत्ति अर्जित करने में कुशल किंतु उसका उपभोग करने से डरने वाले व्यक्तियों की संपत्ति उनके घर में उनकी एक मणि के समान मूल्यवान और सुन्दर कन्या के समान रहती है, जो अन्ततः (विवाहित हो कर) किसी दूसरे के घर में चली जायेगी।
Those persons who are expert in acquiring wealth but are afraid of enjoying it by conspicuous consumption, their wealth is like their daughter, beautiful and precious like a jewel, who will ultimately (on being married) go to another household.
पुरुषार्थ करें हम अर्थ कमाएँ,
उपभोग साथ में करते जाएँ,
धन का क्या है कब ठहरा है,
अर्थ यही हम अर्थ कमाएँ।
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