Friday, May 7, 2021

रबिन्द्रनाथ टैगोर

हम यह प्रार्थना न करें कि समस्या न आएँ वरन् यह प्रार्थना करें कि हम उनका सामना निडरता से करें।
- रबीन्द्रनाथ टैगोर।

Let us not pray that there will be no  problem but ought to pray that we face them fearlessly and bravely.
- Rabindra Nath Tagore.

आएँ आज रबीन्द्रनाथ जी की जयंती पर उनके इसी विचार को समझते हुए इस कोरोना नामक समस्या से पूरे मनोयोग से लड़ने हेतु सङ्कल्प लें।

*क्यों हम चाहें सुख का जीवन,*
*बिन अवरोध समस्या जीवन,*
*मन में ये सङ्कल्प सदा हो,*
*निर्भय हों, हो जैसा जीवन।*

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Thursday, April 29, 2021

जय माँ लक्ष्मी

*ईर्ष्या लोभो मदः प्रीतिः क्रोधो भीतिश्च साहसं।*
*प्रवृत्तिच्छिद्रहेतूनि कार्ये सप्त बुधा जगुः।।*

ईर्ष्या, लोभ, अभिमान, मोह, क्रोध, भय, दुस्साहस, ये सात प्रवृत्तियां इस संसार में किसी भी कार्य के संपादन में बाधा और हानि पहुँचाती हैं, ऐसा चतुर और विद्वान् व्यक्तियों का कहना है।

Wise and learned men have proclaimed that in this World, Envy, Greed, Arrogance, Fascination, Anger, Fear and Over-confidence, all these seven traits are the main reason of causing impediments and defects in any work undertaken.

*ईर्ष्या करें न लोभ करें,*
*न क्रोध, भय, अभिमान करें,*
*न मोह न अति विश्वास करें,*
*स्वस्थ रहें, सब काम करें।*

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Wednesday, April 28, 2021

जय विष्णु देव

*दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्।*
*मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय:॥*

यह तीन दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलते हैं : मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ।

These three are very difficult to get and can be achieved only by the grace of the God : birth as human, desire for salvation and company of the nobles.

*मिला मनुज तन इसे बचाएँ,*
*हम अपना आरोग्य बढ़ाएँ,*
*ध्यान, योग नियमित अपनाएँ,*
*रोग शोक सब दूर भगाएँ।*

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Tuesday, April 27, 2021

श्री गणेशाय नमः

*अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात्।*
*तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित्।।*

जिस प्रकार जल के अभाव में अग्नि द्वारा सींचे गये वृक्ष कभी बड़े नहीं होते हैं, उसी प्रकार सत्य के बिना धर्म का पालन नहीं होता है।

Just as trees watered by fire never grow in the absence of water, similarly _Dharma_ is not practiced without truth.

स्वस्थ रहें हम सजग रहें,
कोरोना से बचे रहें।

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Monday, April 26, 2021

जय बजरंगबली

*अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।*

अतुल बल के स्वामी, सोने के पर्वत के (सुमेरु के) समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य वन को ध्वंस करने हेतु अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी को मैं प्रणाम करता हूँ।

Today on the auspicious day of _Hanuman Jaynti_ I pray to Hanuman to curb all miseries in our life.

आज हनुमान प्राकट्य दिवस पर सबके दुःख हरने वाले हनुमान जी से हम सभी पर आये कोरोना नामक संकट से बचाने की प्रार्थना करता हूँ।

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Wednesday, April 21, 2021

भक्ति

*शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।*
*कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर:।।*
गीता : अध्याय ५, श्लोक २३।

जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है।

He who is able to stand, in his life before casting off this body, the urges of lust and anger is Yogi; and he is a happy man.

भक्ति शक्ति संचित की है,
मर्यादा हमने सीखी है,
स्व में स्थित स्वस्थ रहेंगें,
साथ हमारे ईश्वर भी है। 

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Tuesday, April 20, 2021

रामनवमी

*नाम राम को कलपतरु, कलि कल्यान निवास।*
*जो सिमरत भयो भाँग ते, तुलसी तुलसीदास॥*

Name of _Ram_ is _Kalpataru_ (which fulfills the desires) and benediction abode (house of liberation), and by its remembrance, the poor Tulsidas also became like pious Tulsi.

राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा देनेवाला) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) है, जिनके स्मरण से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान हो गया।

*आज माँ आदिशक्ति के सिद्धिदात्री स्वरूप का नमन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के प्राकट्य दिवस रामनवमी की अनन्त शुभकामनाएँ।*

आएँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के स्मरण के साथ संकल्पित हों एवं कोरोना को हराने हेतु मर्यादा का पालन करें।

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Wednesday, March 31, 2021

महामूर्ख सम्मेलन बनारस

वाराणसी में महामूर्ख सम्मेलन 2021
वक्त बदलता रहा निजाम भी बदले किंतु मूर्खों का अभिनंदन जारी
वाराणसी में महामूर्ख सम्मेलन 2021 वक्त बदलता रहा निजाम भी बदले किंतु कहीं घोटालेबाजी तो कहीं रंगबाजी के दम बूते सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में चतुर सयानों के वर्चस्व का ग्राफ चेतावनी बिंदुओं को पीछे छोड़ लगातार ऊंची छलांग लगाता रहा।
वाराणसी [कुमार अजय]। वक्त बदलता रहा निजाम भी बदले किंतु कहीं घोटालेबाजी तो कहीं रंगबाजी के दम बूते सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में चतुर सयानों के वर्चस्व का ग्राफ चेतावनी बिंदुओं को पीछे छोड़ लगातार ऊंची छलांग लगाता रहा। दूसरी तरफ नून-तेल-लकड़ी की चिंता में खपा जा रहा मूरख यानी आम आदमी, टीवी, बीवी और फोर जीबी के माया जाल में फंसा बकलोलई के प्रतिमान बनाता रहा। अब कोई पैसे और पावर के दमपर मलाई के साथ सारे संसाधनों का शक्कर फांकता रहे।
दूसरी ओर आश्वासनों का लोला (लकड़ी का लालीपाप) हाथ में थामें आम नागरिक टुकुर-टुकुर ताकता रहे। यह अंधेर गर्गी कम से कम विद्रोही मिजाज के शहर बनारस में तो चुप्पी के साथ पचाई नहीं जा सकती। कोई कितना भी चतुर सयाना क्यों ने हो। व्यंग्य की मार से उसकी चमड़ी बचाई नहीं जा सकती। ऐसे में यहां कि पिंगल पढ़ंत में विद्यावारिधि भी हैसियत रखने वाले दो व्यंग्यकारों ने इस अन्नाय के खिलाफ जबकर तबर्रा पढ़ा और समाज के पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने की गरज से मूर्खों की उजबकई को सच्ची देशभक्ति का प्रमाण देते हुए उनके लिए खास तौर पर यह उत्सव गढ़ा। इस नीरीह जीव के मन की घुमड़ती खामोशी को जुबान दी। सन अस्सी के दशक में ठहाका के नाम से चौक की प्रसिद्ध भद्दोमल की कोठी की विशाल छत पर उत्सव रचाकर मूर्ख और मूर्खता को मान दिया। लेन-देन के दौर में भी ठन-ठन गुल्लक खड़का रहे मूर्ख मनई की इमानदारी के वंदन के लिए एक विशुद्ध पिंगली आयोजन ठान दिया।
रुद्धक गुरु यानी शेष स्मृति पं. धर्मशाली चतुर्वेदी व उनके हमसाया चकाचक बनारसी स्व. रेवती रमण श्रीवास्तव की अगुवाई में नगरवासियों को साथ लेकर पहली अप्रैल की तय तिथि पर चौक में पहला ठहाका उत्‍सव रचाया। आम्र गोष्ठी (आम के दिनों में), लाई-चूड़ा गोष्ठी (मकर संक्रांति), उलूक महोत्सव (दीपावली) तथा बुढवा मंगल (होली) जैसे खुद बनारसियों द्वारा गढ़े गए उत्सवों की सूची में एक और रंगीले उत्सव ने अपना नाम दर्ज कराया। यही उत्सव आज दशकों का कालखंड पीछे छोड़कर महामूर्ख सम्मेलन के नाम से दशाश्वमेध घाट तक पहुंच गया। आज यही आयोजन दशकों का सफर पीछे छोड़कर काशी के कलरफूल उत्सवों की सूची का नगीना है। अप्रैल के पहले दिन परंपरागत रूप से मनाए जा रहे। मस्ती के नाम समर्पित इस उत्सव का पोर-पोर भी उमंग उल्लास के रस में भीना-भीना है। जिक्र है 1982 का । भद्दोमल के छत पर ही आयोजित ठहाका में पहली बार एक युवा हास्य कवि के रूप में शामिल हुए ख्यात रचनाकार बदरी विशाल। उस उत्सव को याद करने मात्र से टनाटन हो गए। बदरी बताते हैं कि उस बार भी आयोजन की रीति नीति के तहत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पं. लोकपति त्रिपाठी को उन्हीं की धर्मपत्नी श्रीमती चंद्रा त्रिपाठी की भार्या घोषित कर अगड़म-बगड़म शास्त्र के मंत्रों से उनका पाणी ग्रहण कराया। जब मूल शास्त्र ही अंड-बंड हो तो यह संबंध भी कितना निभेगा। यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। सो शंखनाद की जगह गर्दभ ध्वनि की चिंघाड़ और उलटे कलश पर किरासिन तेल का दिया बारकर रचाया गया। यह विवाह पिंगली शाखोचारों के तुरंत बाद कुर्सी की टांग की तरह टूट गया। पांच गारी एहर से अ पांच गारी ओहर से मिली उपहार में और मामला मुठ्ठी के रेत की तरह हाथ से सरक गया। वरिष्ठ काशीकेय अमिताभ भट्टाचार्या कहते हैं गर्दभ ध्वनि धोबियाना नाच और बेमेल विवाह की रस्म तो अब भी जारी है। सबसे खटकती है पिंगलों की मार का वह प्रहार जो व्यवस्था को अवकात में लाती थी। तथा दर्शकों की तालियां इस खिलाफत को सराहते हुए पूरे शहर में माहौल बनाती थीं। कहते हैं  दादा  अमिताभ यह पिंगल ही कार्यक्रम की जान होते थे। अराजकता पर सीधा वार करते थे और निजाम की साख को बनाते बिगाड़ते थे। सब कुछ प्रायोजित होने के बाद अब उस उन्नमुक्तता की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। रही  ठहाकों  की  बात  तो धर्मशील जी के अनंत यात्रा पर ये उन्नमुक्त ठहाके भी न जाने कहीं खो गए। बच गई थी लाचार सी दंतनिपोरई। वह भी कोरोना काल के बाद से मास्क के अंदरही कैद हो गई।
अबहीं फुरसत केकरे लग्गे हव बनारसियों से पूछिए तो उनका कहना है कि होली की खुमारी अभी उतरी नहीं कि मूर्ख सम्मेलन का भोंपू बज जाता है। भांति-भांति के रंग भंग और विजया की तरंग की चंग से उतरा बनारसी महामूर्खों का पांव पूजने के लिए महामूर्ख सम्मेलन की ओर चल देता है। पूछिए तो जवाब मिलता है कि भईया अबहीं फुरसत केकरे लग्गे हव। अबहीं त इ अलसायल मस्ती बुढवा मंगल तक ले जाई दुइए चार दिन  के  बाद  वासंतिक नवरात्र ले के खुदै अइहें दुर्गा माई।
धुरंधर हास्य महोत्सव में अस्सी घाट पर गूंजेंगे ठहाके
रंग और उल्लास के पर्व होली के बाद मिलन समारोहों और कवि सम्मेलनों का  दौर जारी है। धर्म-संस्कृति और सर्व विद्या की राजधानी काशी में तो हर रोज कहीं न कहीं सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन हो रहे हैं। इसी क्रम में बुधवार की शाम अस्सी घाट पर धुरंधर हास्य महोत्सव में कवियों की रचनाओं पर ठहाके गूंजेंगे।
'धुरंधर हास्य महोत्सव' का अस्सी घाट पर यह सोलहवां आयोजन है। हालांकि शाम 4.00 बजे से आरंभ होने वाले इस महोत्सव में हास्य व व्यंग्य के अतिरिक्त अन्य रसों व धाराओं के कविगण भी शामिल होंगे। भारतीय नववर्ष के स्वागत और होली मिलन के उपलक्ष्य में आयोजित इस कवि सम्मेलन में वृंदावन से ओज के कवि उमाशंकर राही, सतना मध्य प्रदेश से हास्य के कवि रवि चतुर्वेदी, संत कबीरनगर से कवयित्री अनन्या राय पराशर, गोरखपुर से गीतकार मनमोहन मिश्र, कैमूर बिहार के हास्य विधा के कवि लोकनाथ तिवारी 'अनगढ़', हास्य पैरोडीकार बाराबंकी के प्रमोद पंकज, मऊ से ओज के कवि पंकज प्रखर, वाराणसी के हास्य कवि डा.धर्मप्रकाश मिश्र अपनी रचनाएं प्रस्तुत करेंगे। हास्य-व्यंग्य के कवि डाॅ. नागेश शांडिल्य के संयोजन में होने वाले इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ गीतकार पं. हरिराम द्विवेदी करेंगे।

लेखन- बनारस समाचार

Thursday, March 25, 2021

रंग भरी एकादशी

Rangbhari Ekadashi In Varanasi
बाबा विश्वनाथ का गौना... 'हर हर महादेव' के उद्घोष से गूंजी काशी
काशी की लोक परंपरा के अनुसार रंगभरी एकादशी पर बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के गौना के मुख्य अनुष्ठान शुरू हुए। भोर लगभग चार बजे 11 वैदिक ब्राह्मणों ने विधि विधान से बाबा का रुद्राभिषेक किया।
काशी की लोक परंपरा के अनुसार रंगभरी एकादशी पर बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के गौना के मुख्य अनुष्ठान शुरू हुए। भोर लगभग चार बजे 11 वैदिक ब्राह्मणों ने विधि विधान से बाबा का रुद्राभिषेक किया। सूरज की किरणें धरती पर आने के साथ शिव-शक्ति को पंचगव्य से स्नान कराने का साथ षोडषोपचार पूजन किया गया। वहीं दोपहर में अन्‍न क्षेत्र का भी परंपराओं के अनुरूप उद्घाटन किया गया। अनुष्‍ठानों का दौर शुरू हुआ तो बाबा दरबार हरहर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा। दूर दराज से लोग पहुंचे तो विश्‍वनाथ गली में भी ट्रैफ‍िक जाम सरीखा नजारा दिखने लगा। बस लोगों को बाबा की पालकी का ही इंतजार बचा रह गया था जो शाम होते ही निकली तो काशी विश्‍वनाथ गली हर हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठी। 
सुबह सात बजे शुरू हुए लोकाचार और बाबा का श्रृंगार किया गया। इसके लिए महंत परिवार की महिलाएं गीत गाते श्रीकाशी विश्वनाथ दरबार पहुंचीं और बाबा की आंखों में लगाने के लिए मंदिर के खप्पड़ से काजल लिया। गौरा के माथे पर सजाने के लिए सिंदूर परंपरानुसार अन्नपूर्णा मंदिर के मुख्य विग्रह से लाया गया। शिव-पार्वती के विग्रह को महंत आवास के भूतल स्थित हाल में विराजमान कराया गया और भोग अर्पित किया गया। महंत डा. कुलपति तिवारी ने विधि विधान से वेद मंत्रों के बीच महाआरती की। दोपहर में आयोजन की तैयारियां शुरू हुईं तो आस्‍थावानों के कदम भी उधर ही बढ़ चले। शाम होने की ओर घड़ी ने रुख किया तो बाबा दरबार में आस्‍था हिलोरें लेने लगीं। अबीर और गुलाल हाथ में लिए शिवभक्‍त बाबा के इंतजार में पलक पावड़े बिछाए नजर आए।   
दोपहर बाद उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री डा. राजेश्वर आचार्य शिवांजलि महोत्सव का उद्घाटन किया और गौरा की अंगनाई मंगल गीतों से गूंज उठी। इसमें डा. अमलेश शुक्ल समेत पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से आए कलाकारों ने हाजिरी लगाई। यह सिलसिला शिव आधारित गीतों के साथ शाम साढ़े चार बजे तक चला, इसके बाद बाबा की पालकी यात्रा निकली जो मंदिर परिसर तक गई। इसमें श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा और अबीर गुलाल से रेड कारपेट सी बिछ गई। बाबा के भाल पहला गुलाल सजाकर काशीवासी होली हुड़दंग की अनुमति पाकर निहाल हुए। शिव परिवार को मंदिर गर्भगृह में विराजमान करा कर लोकाचार निभाया गया। मंदिर प्रशासन की ओर से इस खास मौके पर संगीतमय शिवार्चन किया गया।
बाबा के गौना महोत्सव की शुरूआत 21 मार्च को गीत गवना के साथ की गई थी। इसके तहत 22 मार्च को गौरा के तेल-हल्दी की रस्म निभाई गई। वहीं बाबा 23 मार्च को ससुराल यानी टेढ़ी नीम स्थित महंत आवास आए। संध्या बेला में 11 वैदिक ब्राह्मणों ने स्वतिवाचन, वैदिक घनपाठ और दीक्षित मंत्रों से आराधना कर उन्हें रजत सिंहासन पर विराजमान कराया। रंगभरी ठंडई से उनका अगवानी की गई। परंपराओं के अनुसार लोकाचार के मुताबिक आयोजन शुरू हुआ तो काशी में हर हर महादेव का उद्घोष गूंज उठा। 

लेखन- वाराणसी समाचार, वाराणसी।

Tuesday, March 23, 2021

हल्दी की रस्म

वाराणसी में मंगल गीतों के बीच माता गौरा को लगाई हल्दी, रंगभरी एकादशी पर निकलेगी गौना बरात
बाबा के गौना की रस्म के दूसरे दिन सोमवार को महंत आवास पर तेल-हल्दी की रस्म निभाई गई। गौरा के विग्रह को सुहागिनों ने हल्दी लगाई। नजर उतारने के लिए साठी क चाऊर चूमिय चूमिय... गीत गाकर माता गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा।
वाराणसी, जेएनएन। बाबा के गौना की रस्म के दूसरे दिन सोमवार को महंत आवास पर तेल-हल्दी की रस्म निभाई गई। गौरा के विग्रह को सुहागिनों ने हल्दी लगाई। नजर उतारने के लिए साठी क चाऊर चूमिय चूमिय... गीत गाकर माता  गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। महंत डा. कुलपति तिवारी व पं. सुशील त्रिपाठी के आचार्यत्व में पं. वाचस्पति तिवारी व संजीव रत्न मिश्र ने माता गौरा का श्रृंगार किया। शाम को मंगलगीतों से अंगनाई गूंज उठी। ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच महिलाओं ने गीत गाया। कलाकारों ने गौरा के हरदी लगावा, गोरी के सुंदर बनावा..., सुकुमार गौरा कइसे कैलाश चढि़हें..., गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइ हैं ससुरारी... आदि गीतों में गौने के दौरान दिखने वाली ²श्यावली निखर कर सामने आई। साथ ही इस दौरान बाबा के गौना की तैयारियों पर चर्चा की गई।
बाबा की पगड़ी की हुई विशेष पूजा
रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ के मस्तक पर लगने वाली राजशाही पगड़ी की विशेष पूजा हुई। भक्तों को गौरा की विदाई से पहले बाबा के राजसी स्वरूप के दर्शन होंगे।
वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच हुआ षोडशोपचार पूजन व आरती
बनली भवानी दुलहिनिया के बिदा होके जइहैं ससुरार..., शिव दुलहा बन अइहैं, गौरा के लिया जइहैं..., मंगल बेला में आए महादेव बन दुलहा... और जा के ससुरे सखी न भुलइहा... आदि पारंपरिक मंगल गीतों से विश्वनाथ मंदिर के महंत का आवास गूंज उठा। अवसर था मां गौरा के गौना से पूर्व किए जाने वाले लोकाचार का, दिन था रविवार और बेला शाम की। इसी के साथ चार दिनों का रंगभरी का काशी का यह महामहोत्सव विशिष्ट धार्मिक व लोकाचार के आयोजनों के साथ उल्लासपूर्ण वातावरण में शुरू हो गया और इसी के साथ काशी में होली का आगाज भी। टेढ़ीनीम स्थित नवीन महंत आवास पर रविवार की शाम को पं. सुशील त्रिपाठी के आचार्यत्व में अंकशास्त्री पं. वाचस्पति तिवारी ने माता गौरा की प्रतिमा का विशेष  षोडशोपचार पूजन किया। संजीव रत्न मिश्र ने श्रृंगार - आरती की। भोग अर्पण के बाद गवनहरियों और परिवार की महिलाओं ने मिलकर मंगल गीत गाए। माता गौरा की रजत प्रतिमा के समक्ष दीप जला कर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच महिलाओं ने चुमावन की रस्म भी अदा की। साठी क चाउर चुमीय चुमीय..,मनै मन गौरा जलाए जब चाउर चुमाए...,गौरा के लागे ना नजरिया कजरवा लगाय द ना... जैसे पारंपरिक गीतों के गायन का क्रम रात नौ बजे तक चलता रहा। इसके बाद सुहागिनों की अंचरा भराई की गई। महंत परिवार की महिलाओं ने गवनहरियों के आंचल में अक्षत, गुड़, हल्दी, खड़ी सुपाड़ी और दक्षिणा डाल कर उनकी विदाई की।