Wednesday, March 17, 2021

कर्तव्य

*नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।*
*आत्मा तु पात्रतां नेयः पात्रमायान्ति संपदः।।*
       
यद्यपि समुद्र ने जल की कभी कामना नहीं की और न ही किसी से इस हेतु संपर्क किया परन्तु फिर भी वह सदा जल से भरा ही रहता है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति धर्म का पालन कर अपने को सुयोग्य बना ले तो उसे सुपात्र जान कर धन संपत्ति स्वयं ही उसके पास आ जाती है।

{इसी भावना को गोस्वामी तुलसीदास जी ने 'रामचरितमानस' में भी व्यक्त किया है: 
जिमि सरिता सागर मंहुं जाहीं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं। 
तिमि सुख संपति बिनहिं बुलाये। धर्मशील पहिं जाहिं सुभाये।। (बालकाण्ड पद २९४ ) }

The ocean neither desires nor approaches any one for water, but still it always remains full with water. Similarly, if a person makes himself worthy through performing his duties well with religious austerity, then considering him as a proper recipient, wealth itself favours him, although he may not desire it.

*हम अपना कर्तव्य निभाएँ,*
*जीवन सुख से भरा बनाएँ।*

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Tuesday, March 16, 2021

समय

*आयुषः क्षण एकोऽपि*
*सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।*
*नीयते स वृथा येन *
*प्रमादः सुमहानहो ॥*

आयु का एक क्षण भी समस्त रत्नों को देने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अतः समय को व्यर्थ में नष्ट कर देना सबसे महान असावधानी है।

Even a single second in life cannot be obtained back by all precious jewels. Hence spending it wastefully is a great mistake.

*स्वस्थ रहें और योग करें,*
*समय अमोल सदुपयोग करें।*

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Friday, March 12, 2021

प्रतिकार

*पदाहतं सदुत्थाय मूर्धानमधिरोहति।*
*स्वस्थादेवापमानेपि देहिनस्वद्वरं रज:।।*

अकारण अपमान, अन्याय एवं शोषण किये जाने पर भी चुप बैठने वाले व्यक्ति से, पैरों के प्रहार होने पर ऊपर उठने वाला मिट्टी का कण श्रेष्ठ है। चुपचाप अन्याय सहना भी अन्याय करने के समान ही है।

The earthen mites which raise against the feet hit are superior to the person who is sitting silently against unprovoked insults, injustice and exploitation. Silently tolerating injustice is the same as doing injustice.

अन्याय नहीं चुपचाप सहें,
उठें और प्रतिकार कहें,
रज कण भी उठता ठोकर से,
मनुज बनें हम स्वस्थ रहें।

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Thursday, March 11, 2021

जय हो

*अनारोग्यमनायुष्यमस्वर्ग्यं चातिभोजनम्।*
*अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत्।।*

अति भोजन अर्थात आवश्यकता से अधिक भोजन आरोग्य का विनाश करने वाला, आयु को कम करने वाला, स्वर्गप्राप्ति में बाधक, पुण्यों का नाशक तथा समाज में निंदा कराने वाला होता है, इसलिए उसका परित्याग कर देना चाहिए।

Eating without need of our body causes illness, reduces our life, obstacles to attain supreme joy and also makes condemnable; so we should leave this habit.

जितना हो आवश्यक खाएँ,
स्वस्थ बनें विद्वान कहाएँ।

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Wednesday, March 10, 2021

हर हर महादेव

साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम् का छठा श्लोक :

*कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,* *सदासच्चिदानन्द दाता पुरारि।*
*चिदानन्द सन्दोह मोहापहारि, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि।६।*

कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर (समस्त पापों) के शत्रु, सच्चिनानंद, मन के मोह को हरने वाले, हे प्रभु! प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।

Beyond the all worldly things, arts, Kalyansarupa, who ends the Kalpa (holocaust), always brings joy to the mankind, the enemy of all sins, defeats the fascination, O Lord Shiva be happy, be happy.

महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर आएँ हम निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।

*शिव एवं सती के महामिलन के पर्व महाशिवरात्रि की कोटि कोटि शुभकामनाएँ।*

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Wednesday, February 17, 2021

धर्म

*परहित सरिस धर्म नहिं भाई ,*
*पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।*
रामचरित मानस : उत्तर काण्ड।

दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई नीचता (पाप) नहीं है।

There is no religion like to do good for others and there is no degeneracy (sin) like hurting others.

*रहें स्वस्थ सारे, यही प्रार्थना हो,*
*हृदय में दया की भरी भावना हो,*

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Monday, February 15, 2021

वसंत पंचमी

*म॒हो अर्णः॒ सर॑स्वती॒ प्र चे॑तयति के॒तुना॑। धियो॒ विश्वा॒ वि रा॑जति॥*
ऋग्वेद :१/३/१२

जो (सरस्वती) वाणी (केतुना) शुभ कर्म अथवा श्रेष्ठ बुद्धि से (महः) अगाध (अर्णः) शब्दरूपी समुद्र को (प्रचेतयति) जाननेवाली है, वही मनुष्यों की (विश्वाः) सब बुद्धियों को विशेष प्रकाशित करती है।

आज सृष्टि के आरम्भ दिवस *बसंत पंचमी* पर हम सभी की वाणी एवं बुद्धि में *देवी सरस्वती* विराजित हों, ऐसी शुभकामनाएँ।

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Sunday, February 14, 2021

लाफ्टर क्लब

प्रेस विज्ञप्ति :-

"लाफ़्टर क्लब" पुस्तक का विमोचन लाफ़्टर के बेताज बादशाह श्री राजू श्रीवास्तव के हाथों सम्पन्न हुआ |
     हास्य-व्यंग्य के चार एकांकी नाटकों का संग्रह है "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक | इन नाटकों में समाज के विभिन्न समस्याओं को बहुत ही मनोरंजक तरीके से पेश किया गया है |
     "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक के लेखक श्री आशुतोष सिन्हा ख़ुद भी थिएटर और बॉलीवुड के एक जाने-माने कलाकार हैं |
मुंबई में अभिनय के क्षेत्र में काम करते हुए कई टीवी सीरियल, फिल्म और थिएटर में आशुतोष सिन्हा ने यादगार किरदार निभाये हैं |
     वहीं दूसरी तरफ लेखन के क्षेत्र में भी टीवी सीरियल और फिल्म के साथ-साथ थिएटर के लिए भी कई बड़े और बेहद सफल नाटकों का सृजन भी आशुतोष सिन्हा के द्वारा किया गया है, जिसे देश-विदेश में काफी सराहना मिली है | 
     "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में Amazon,  Flipkart, Evincepub.com, Google Play, good reads, iBooks, Kobo जैसे प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं |
        "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद श्री सुरेश राजन अय्यर ने किया है, जो इस पुस्तक के कई नाटकों में अभिनय भी कर चुके हैं |
       पुस्तक में पहला नाटक "मिडिल क्लास" है, जिसमें मध्यम वर्ग की समस्याओं को हास्य-व्यंग्य के जरिए उजागर किया गया है |
       दूसरा नाटक "फ्यूचर इज़ अंधेरा है, जिसमें अंडरवर्ल्ड के गुंडों का हृदय परिवर्तित होते हुए दिखाया गया है |
      तीसरा नाटक "लाफ़्टर क्लब" है, जिसमें    स्वाभाविक इनसानी संवेदनाओं को दबाने से क्या होता है ये दर्शाया गया है|
      चौथा और अंतिम नाटक "एड्स एड़ा" है, जिसमें एड्स जैसे गंभीर और भयंकर बीमारी के बारे में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से बताया गया है |
       "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक सिर्फ थिएटर प्रेमी और थिएटर कलाकारों के लिए ही नहीं है, बल्कि आम बुक रीडर्स भी इसे पढ़ कर आनंद उठा पाएंगे |

Wednesday, January 27, 2021

भक्ति

*कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा,*
*या सेवा कर साधु की, या गोविन्द गुण गा।*

इस निश्चित मृत्यु वाले शरीर के सदुपयोग करने की सीख देते हुए कबीर जी कहते हैं कि अपने जीवन को उचित एवं लाभकारी कार्यों यथा साधु सज्जनों की सेवा अथवा भगवत् भक्ति में लगाना चाहिए।

The great saint _Kabir_ told us to use wisely this mortal life by doing righteous deeds like serving good people or praying the God.

*जन्म मनुज जो पाएँ हम,*
*प्रभु गुण गाते जाएँ हम,*
*सज्जन सेवा कर्म हमारा,*
*जीवन लक्ष्य बनाएँ हम।*

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अनुकूल

*संपत्सु महतां चित्तं  भवत्युत्पलकोमलं।*
*आपत्सु च महाशैलं शिलासंघात कर्कशम्।।*

महान व्यक्तियों का स्वभाव उनके सुखी और समृद्ध होने पर भी एक पुष्प के समान कोमल होता है एवं विपत्ति की स्थिति में पर्वत की शिलाओं के समान कठोर हो जाता है।

During prosperity the heart of a noble man is kind and soft like a flower. But in adverse times it becomes as hard as rock of a mountain.

*समय अनुकूल पुष्प रहें हम,*
*शान्त सौम्य उदार रहें हम,*
*समय विपरीत चट्टान बनें हम,*
*विचलित क्यों, क्यों टूटें हम।*

स्वस्थ रहें।

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