Thursday, March 11, 2021

जय हो

*अनारोग्यमनायुष्यमस्वर्ग्यं चातिभोजनम्।*
*अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत्।।*

अति भोजन अर्थात आवश्यकता से अधिक भोजन आरोग्य का विनाश करने वाला, आयु को कम करने वाला, स्वर्गप्राप्ति में बाधक, पुण्यों का नाशक तथा समाज में निंदा कराने वाला होता है, इसलिए उसका परित्याग कर देना चाहिए।

Eating without need of our body causes illness, reduces our life, obstacles to attain supreme joy and also makes condemnable; so we should leave this habit.

जितना हो आवश्यक खाएँ,
स्वस्थ बनें विद्वान कहाएँ।

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Wednesday, March 10, 2021

हर हर महादेव

साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम् का छठा श्लोक :

*कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,* *सदासच्चिदानन्द दाता पुरारि।*
*चिदानन्द सन्दोह मोहापहारि, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि।६।*

कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर (समस्त पापों) के शत्रु, सच्चिनानंद, मन के मोह को हरने वाले, हे प्रभु! प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।

Beyond the all worldly things, arts, Kalyansarupa, who ends the Kalpa (holocaust), always brings joy to the mankind, the enemy of all sins, defeats the fascination, O Lord Shiva be happy, be happy.

महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर आएँ हम निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।

*शिव एवं सती के महामिलन के पर्व महाशिवरात्रि की कोटि कोटि शुभकामनाएँ।*

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Wednesday, February 17, 2021

धर्म

*परहित सरिस धर्म नहिं भाई ,*
*पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।*
रामचरित मानस : उत्तर काण्ड।

दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई नीचता (पाप) नहीं है।

There is no religion like to do good for others and there is no degeneracy (sin) like hurting others.

*रहें स्वस्थ सारे, यही प्रार्थना हो,*
*हृदय में दया की भरी भावना हो,*

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Monday, February 15, 2021

वसंत पंचमी

*म॒हो अर्णः॒ सर॑स्वती॒ प्र चे॑तयति के॒तुना॑। धियो॒ विश्वा॒ वि रा॑जति॥*
ऋग्वेद :१/३/१२

जो (सरस्वती) वाणी (केतुना) शुभ कर्म अथवा श्रेष्ठ बुद्धि से (महः) अगाध (अर्णः) शब्दरूपी समुद्र को (प्रचेतयति) जाननेवाली है, वही मनुष्यों की (विश्वाः) सब बुद्धियों को विशेष प्रकाशित करती है।

आज सृष्टि के आरम्भ दिवस *बसंत पंचमी* पर हम सभी की वाणी एवं बुद्धि में *देवी सरस्वती* विराजित हों, ऐसी शुभकामनाएँ।

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Sunday, February 14, 2021

लाफ्टर क्लब

प्रेस विज्ञप्ति :-

"लाफ़्टर क्लब" पुस्तक का विमोचन लाफ़्टर के बेताज बादशाह श्री राजू श्रीवास्तव के हाथों सम्पन्न हुआ |
     हास्य-व्यंग्य के चार एकांकी नाटकों का संग्रह है "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक | इन नाटकों में समाज के विभिन्न समस्याओं को बहुत ही मनोरंजक तरीके से पेश किया गया है |
     "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक के लेखक श्री आशुतोष सिन्हा ख़ुद भी थिएटर और बॉलीवुड के एक जाने-माने कलाकार हैं |
मुंबई में अभिनय के क्षेत्र में काम करते हुए कई टीवी सीरियल, फिल्म और थिएटर में आशुतोष सिन्हा ने यादगार किरदार निभाये हैं |
     वहीं दूसरी तरफ लेखन के क्षेत्र में भी टीवी सीरियल और फिल्म के साथ-साथ थिएटर के लिए भी कई बड़े और बेहद सफल नाटकों का सृजन भी आशुतोष सिन्हा के द्वारा किया गया है, जिसे देश-विदेश में काफी सराहना मिली है | 
     "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में Amazon,  Flipkart, Evincepub.com, Google Play, good reads, iBooks, Kobo जैसे प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं |
        "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद श्री सुरेश राजन अय्यर ने किया है, जो इस पुस्तक के कई नाटकों में अभिनय भी कर चुके हैं |
       पुस्तक में पहला नाटक "मिडिल क्लास" है, जिसमें मध्यम वर्ग की समस्याओं को हास्य-व्यंग्य के जरिए उजागर किया गया है |
       दूसरा नाटक "फ्यूचर इज़ अंधेरा है, जिसमें अंडरवर्ल्ड के गुंडों का हृदय परिवर्तित होते हुए दिखाया गया है |
      तीसरा नाटक "लाफ़्टर क्लब" है, जिसमें    स्वाभाविक इनसानी संवेदनाओं को दबाने से क्या होता है ये दर्शाया गया है|
      चौथा और अंतिम नाटक "एड्स एड़ा" है, जिसमें एड्स जैसे गंभीर और भयंकर बीमारी के बारे में हास्य-व्यंग्य के माध्यम से बताया गया है |
       "लाफ़्टर क्लब" पुस्तक सिर्फ थिएटर प्रेमी और थिएटर कलाकारों के लिए ही नहीं है, बल्कि आम बुक रीडर्स भी इसे पढ़ कर आनंद उठा पाएंगे |

Wednesday, January 27, 2021

भक्ति

*कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा,*
*या सेवा कर साधु की, या गोविन्द गुण गा।*

इस निश्चित मृत्यु वाले शरीर के सदुपयोग करने की सीख देते हुए कबीर जी कहते हैं कि अपने जीवन को उचित एवं लाभकारी कार्यों यथा साधु सज्जनों की सेवा अथवा भगवत् भक्ति में लगाना चाहिए।

The great saint _Kabir_ told us to use wisely this mortal life by doing righteous deeds like serving good people or praying the God.

*जन्म मनुज जो पाएँ हम,*
*प्रभु गुण गाते जाएँ हम,*
*सज्जन सेवा कर्म हमारा,*
*जीवन लक्ष्य बनाएँ हम।*

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अनुकूल

*संपत्सु महतां चित्तं  भवत्युत्पलकोमलं।*
*आपत्सु च महाशैलं शिलासंघात कर्कशम्।।*

महान व्यक्तियों का स्वभाव उनके सुखी और समृद्ध होने पर भी एक पुष्प के समान कोमल होता है एवं विपत्ति की स्थिति में पर्वत की शिलाओं के समान कठोर हो जाता है।

During prosperity the heart of a noble man is kind and soft like a flower. But in adverse times it becomes as hard as rock of a mountain.

*समय अनुकूल पुष्प रहें हम,*
*शान्त सौम्य उदार रहें हम,*
*समय विपरीत चट्टान बनें हम,*
*विचलित क्यों, क्यों टूटें हम।*

स्वस्थ रहें।

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Friday, December 25, 2020

प्रभु प्राप्ति

*यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:,*
*तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।*

गीता : अध्याय १८: श्लोक ७८।

गीता का अंतिम श्लोक सम्पूर्ण सार बताता है:
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण (परम सत्ता) हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन (पूर्ण समर्पित कर्ता) हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है।

The last verse of _GEETA_ tells the essence : Wherever there is Shree Krishna, the Lord of all Yog (Almighty) and wherever there is Arjun (a dedicated doer), the supreme archer, there will certainly be unending opulence, victory, prosperity, and righteousness.

*हों अर्जुन सम पूर्ण समर्पित,*
*कृष्ण मिलेंगें है यह निश्चित,*
*विजय विभूति श्री भी होगी,*
*संशय इसमें नहीं है किञ्चित।*

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Thursday, December 24, 2020

गीता जयंती

*धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।*
*मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥*
(गीता १/१)

युद्ध के मैदान में मोहग्रस्त अर्जुन को जीवन का सार समझाते हुए परम योगीश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को गीता का ज्ञान दिया था।
 
सम्पूर्ण गीता का सार एवं जीवन जीने का सूत्र, जो इसके प्रथम श्लोक के पहले दो शब्दों *धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे* में ही समाहित है,

*क्षेत्रे क्षेत्रे धर्म कुरु*

अर्थात जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म के अनुसार आचरण करें।

We should do all our deeds righteously according to our duty in all the fields of our life.

(यद्यपि श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोक धृतराष्ट्र द्वारा संजय से युद्ध क्षेत्र के क्रिया कलापों को जानने हेतु किया गया प्रश्न है।)

आज गीता जयंती पर आएँ हम सभी इसी सार को अपने जीवन एवं अपने आचरण में धारण करें।

सादर,

*मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती की शुभकामनाएँ।*

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Wednesday, December 23, 2020

परम सत्ता

*करोषीव न कर्ता त्वं गच्छसीव न गच्छसि।*
*श्रृणोषि न श्रृणोषीव पश्यसीव न पश्यसि॥*
अध्यात्म रामायण : बालकाण्ड : तृतीय सर्ग श्लोक २३।

परमसत्ता के परम रूपः का वर्णन करते हुए कहा :
हे प्रभु! आप कर्ता नहीं हैं, फिर भी करते हुए प्रतीत होते हैं। चलते नहीं हैं, फिर भी चलते से मालूम होते हैं। न सुनते हुए भी सुनते से दिखाई देते हैं। और न देखते हुए भी देखते हुए जान पड़ते हैं।  

इसी परम रूप का वर्णन तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में किया है:

*बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।* *कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥*
*आनन रहित सकल रस भोगी।* *बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥*

The Almighty is not a doer, yet seem to be doing. Don't walk, but appear to be walking.  Don't listen, but look to be listening. And appear to be watching, despite not watching actually.

*परम शक्ति को जानें हम,*
*अन्तस् में है मानें हम,*
*हम सब अंश उसी का हैं,*
*निज को अब पहचानें हम।*

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