Saturday, October 17, 2020

परोपकार

*उपकारः परो धर्मः परोर्थः कर्मनैपुणं।*
*पात्रे दानं परः कामः परो मोक्षो वितृष्णता।।*

निस्वार्थ भाव से लोगों की सहायता करना सर्वोत्तम धार्मिक आचरण है, सर्वोत्तम संपत्ति किसी भी प्रकार के कार्य में निपुणता है, सुपात्र व्यक्तियों को दान देना सर्वोत्तम दान है। इसके पश्चात अत्यधिक लालच न करते हुए अपनी इच्छाओं की पूर्ति और अन्ततः मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का सर्वोत्तम ध्येय है।

Helping voluntarily the needy persons is the best form of religious austerity and the best form of wealth is expertise in any subject or work. Giving donations to most deserving persons is the best form of charity and fulfilling one's needs without being greedy and ultimately attaining emancipation (Moksha) is the best aim of one's life.

*नौरात्रि में माँ के द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी को नमन*

तप बल से हम सज्जित हों,
हो स्वस्थ स्वयं में स्थित हों,
माँ के चरणों में ध्यान सदा,
देश धर्म हेतु समर्पित हों।

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Thursday, October 15, 2020

स्वाध्याय

*पठतो नास्ति मूर्खत्वं जपतो नास्ति पातकम्।*
*मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः।।*

अध्ययन करने वाले को मूर्खता नहीं आती, परम तत्व को स्मरण करने वाला बुरे कर्मों से दूर रहता है, मौन रहने वाले का झगड़ा नहीं होता और जागृत अर्थात सतर्क रहने वाले को भय नहीं होता।

A knowledge seeker/learner doesn't have imbecility; a contemplating person won't have sin; a silent observer won't get in strife; there is no fear for the awakened/ alert person. 

स्वाध्याय करें, स्मरण करें,
हम सतर्क हो नहीं डरें,
निज स्वास्थ्य का ध्यान धरें,
परम् तत्व का ध्यान करें।

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Wednesday, October 14, 2020

कर्तव्य

*चला लक्ष्मीश्चला: प्राणाश्चलं जीवित-यौवनम्।*
*चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥*

धन सम्पदा आती है जाती है, जीवन, यौवन भी चले जाते हैं, इस चलाचल (आने जाने वाले) संसार में मात्र एक धर्म अर्थात कर्तव्य ही निश्चल है।

Wealth comes and goes, life and youth also don't remain, in this world of coming and going, the _Dharma_ only is eternal.

निज कर्तव्य का भान करें,
अटल यही है मान करें,
जीवन यौवन धन जाने हैं,
परम तत्व का ध्यान करें।

स्वस्थ रहें।

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Monday, October 12, 2020

मधुर वचन

*दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता।*
*अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वार: सहजा गुणा:।।*

दान देने की इच्छा, मधुर वचन बोलना, सहनशीलता और उचित-अनुचित का ज्ञान- ये चार बातें मनुष्यों में सहज स्वभाव से ही होती है, इन्हें अभ्यास से प्राप्त नहीं किया जा सकता।

Willingness to donate, speak sweet words, tolerance and knowledge to distinguish proper and inappropriate - these four things happen in human by nature only, they cannot be achieved through practice.

यदि मिला है मानव का तन,
कर लें प्रभु का थोड़ा सुमिरन,
स्वस्थ रहें खुश रखें यह मन,
होगा सार्थक अपना जीवन।

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Thursday, October 8, 2020

गुण

*पात्रविशेषे न्यस्तं गुणान्तरं व्रजति  शिल्पमाधातुः।*
*जलमिव समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलतां  पयोदस्य।।*

वर्षा की बूंदें जब समुद्र में उत्पन्न सीपियों के अन्दर विशेष परिस्थिति में प्रवेश करती हैं तो कालान्तर में वह मोती बन जाती हैं। इसी प्रकार गुण ग्रहण करने की विशेष क्षमता वाले सामान्य व्यक्ति जब गुणी व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं तो वे भी गुणवान हो जाते हैं।

When rain drops enter inside ordinary sea shells during a particular auspicious time, they become pearl bearing shells.
Similarly, a complete change in the merits can occur in only those persons who are endowed with special qualities of acquiring virtues by coming in contact with virtuous and knowledgeable persons.

गुणवानों का साथ रखें,
किन्तु दूरी अवश्य रखें।
मुख को ढककर सदा रखें,
स्वस्थ बनें, स्वस्थ रखें।

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Wednesday, October 7, 2020

संचय

*कबिरा सो धन संचिये, जो आगे को होय।*                      *सीस चढ़ाये पोटली, जात न देख्यो कोय।।*

कबीर कहते हैं कि उस धन का संचय करो जो भविष्य में अर्थात इहलोक में भी काम आए क्योंकि मृत्यु के पश्चात सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा।

One should collect the wealth of good deeds which can be used after death also as no body can take this physical wealth with him to another world.

स्वस्थ रहें।

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Tuesday, October 6, 2020

जीवन

*पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।*
*एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः॥*

One can get wealth back, all his assets back, friends and wife back, and all the power back. But no one can get his life back once it is gone.

राज मित्र धन संपदा, परिजन अरु परिवार।
खोवे तो पुनि मिल सके, हमको बारम्बार।।

किन्तु तन से प्राण प्रभो, निकसे जो इक बार।
लौट सके न कबहु पुनि, पुनि पुनि करो विचार।।

जीवन है अनमोल जान लें,
स्वस्थ रहें हम नित्य ठान लें।

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Monday, October 5, 2020

सार तत्त्व

*अणुभ्यश्च महद्भ्यश्च शास्त्रेभ्यः कुशलो नरः।*
*सर्वतः सारमादद्यात्पुष्पेभ्य इव षट्पदः।।*

जिस तरह से मधुमक्खी विभिन्न प्रकार के पुष्पों का सार (पराग और मधु) ग्रहण कर लेती है, 
उसी प्रकार विद्वान एवम्  कुशल जन एक अणु समान छोटी अथवा बहुत बड़ी वस्तु से, सर्वत्र इधर उधर विचरण कर उसका सार तत्व ग्रहण कर लेते हैं।

Learned persons, expert in various Scriptures, collect the essence of various disciplines of learning by roaming everywhere just like the honey bees, who collect the nectar from all types of flowers.

सीख बड़ा भी उतनी देता,
छोटा जितना सिखला देता,
हम भी सबसे अच्छा सीखें,
स्वस्थ रहें, समृद्ध बनें।

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Saturday, October 3, 2020

स्नेह

*आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।*
*तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह॥*

तुलसी दास जी कहते हैं कि जिस स्थान पर लोग आपके जाने से प्रसन्न न होवें और जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम अथवा स्नेह ना हो ऐसे स्थान पर भले ही धन की कितनी भी वर्षा हो रही हो, नहीं जाना चाहिए।

At the place where people are not happy to see you and where there is no love or affection for you in their eyes, no matter how profitable to visit there, you should not go.

*समय अभी ऐसा ही जानो,*
*मिलो दूर से कहना मानो।*

स्वस्थ रहें।

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Wednesday, September 30, 2020

परिस्थिति

*उग्रत्वं च मृदुत्वं च समग्रं वीक्ष्य संश्रयेत्।*
*अन्धकारम् असंहृत्य न उग्रो भवति भास्करः।।*

जिस प्रकार सन्ध्या तथा प्रातःकाल के समय सूर्य अपने प्रखर रूप मे नहीं रहता है। उसी प्रकार परिस्थिति के अनुसार ही मनुष्य को उग्र अथवा मृदु व्यवहार करना चाहिए। परिस्थिति अनुकूल न हो तो क्रोध करने से कोई लाभ नहीं होता है।

Simile of the setting and rising Sun, while dealing with others one should behave firmly (angrily) or gently (with courtesy) only after properly assessing the prevailing situation. When the situation is adverse showing anger does not help at all.

प्रातः संध्या धीमा रहता,
देख समय सूर्य चमकता,
जीवन का यह पाठ सिखाता,
समयानुकूल व्यवहार सुहाता।

स्वस्थ रहें।

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