Tuesday, October 6, 2020

जीवन

*पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।*
*एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः॥*

One can get wealth back, all his assets back, friends and wife back, and all the power back. But no one can get his life back once it is gone.

राज मित्र धन संपदा, परिजन अरु परिवार।
खोवे तो पुनि मिल सके, हमको बारम्बार।।

किन्तु तन से प्राण प्रभो, निकसे जो इक बार।
लौट सके न कबहु पुनि, पुनि पुनि करो विचार।।

जीवन है अनमोल जान लें,
स्वस्थ रहें हम नित्य ठान लें।

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Monday, October 5, 2020

सार तत्त्व

*अणुभ्यश्च महद्भ्यश्च शास्त्रेभ्यः कुशलो नरः।*
*सर्वतः सारमादद्यात्पुष्पेभ्य इव षट्पदः।।*

जिस तरह से मधुमक्खी विभिन्न प्रकार के पुष्पों का सार (पराग और मधु) ग्रहण कर लेती है, 
उसी प्रकार विद्वान एवम्  कुशल जन एक अणु समान छोटी अथवा बहुत बड़ी वस्तु से, सर्वत्र इधर उधर विचरण कर उसका सार तत्व ग्रहण कर लेते हैं।

Learned persons, expert in various Scriptures, collect the essence of various disciplines of learning by roaming everywhere just like the honey bees, who collect the nectar from all types of flowers.

सीख बड़ा भी उतनी देता,
छोटा जितना सिखला देता,
हम भी सबसे अच्छा सीखें,
स्वस्थ रहें, समृद्ध बनें।

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Saturday, October 3, 2020

स्नेह

*आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।*
*तुलसी तहां न जाइये, कंचन बरसे मेह॥*

तुलसी दास जी कहते हैं कि जिस स्थान पर लोग आपके जाने से प्रसन्न न होवें और जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम अथवा स्नेह ना हो ऐसे स्थान पर भले ही धन की कितनी भी वर्षा हो रही हो, नहीं जाना चाहिए।

At the place where people are not happy to see you and where there is no love or affection for you in their eyes, no matter how profitable to visit there, you should not go.

*समय अभी ऐसा ही जानो,*
*मिलो दूर से कहना मानो।*

स्वस्थ रहें।

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Wednesday, September 30, 2020

परिस्थिति

*उग्रत्वं च मृदुत्वं च समग्रं वीक्ष्य संश्रयेत्।*
*अन्धकारम् असंहृत्य न उग्रो भवति भास्करः।।*

जिस प्रकार सन्ध्या तथा प्रातःकाल के समय सूर्य अपने प्रखर रूप मे नहीं रहता है। उसी प्रकार परिस्थिति के अनुसार ही मनुष्य को उग्र अथवा मृदु व्यवहार करना चाहिए। परिस्थिति अनुकूल न हो तो क्रोध करने से कोई लाभ नहीं होता है।

Simile of the setting and rising Sun, while dealing with others one should behave firmly (angrily) or gently (with courtesy) only after properly assessing the prevailing situation. When the situation is adverse showing anger does not help at all.

प्रातः संध्या धीमा रहता,
देख समय सूर्य चमकता,
जीवन का यह पाठ सिखाता,
समयानुकूल व्यवहार सुहाता।

स्वस्थ रहें।

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Tuesday, September 29, 2020

सुख दुःख

*सुखमापतितं सेव्यं दु:खमापतितं तथा।*
*चक्रवत् परिवर्तन्ते दु:खानि च सुखानि च॥*

जीवन में आने वाले सुख का आनन्द लें तथा दु:ख को भी स्वीकार करें।
सुख और दु:ख एक के बाद एक चक्रवत आते रहते हैं।

We should accept sorrow in life as well as joyous moments. Sorrow and Joy both are inevitable and come turn by turn.

सुख दुख दोनों बहते रहते, अविरल समय प्रवाहों में,
सुख है दुःख की गोदी में,
दुःख है सुख की बाहों में।

स्वस्थ रहें।

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Monday, September 28, 2020

परिश्रम

*यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।*
*एव पुरूषकारेण विना दैवं न सिध्यति॥*

जिस प्रकार एक पहिये वाले रथ की गति सम्भव नहीं है, उसी प्रकार पुरुषार्थ एवम् परिश्रम के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होते हैं।

Just like a chariot cannot run with only a single wheel, similarly luck alone cannot work without efforts.

आएँ हम पुरुषार्थ करें,
कभी विफलता से न डरें।

स्वस्थ रहें।

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Sunday, September 27, 2020

मित्र

*अर्चयेदेव मित्राणि सति वाऽसति वा धने।*
*नानर्थयन् प्रजानति मित्राणं सारफल्गुताम्॥*
महाभारत : विदुर नीति

Friends should be respected in every situation, whether they have money or not and they should be helped in times of need even if there is no direct benefit.

मित्रों का हर स्थिति में आदर करना चाहिए, चाहे उनके पास धन हो अथवा न हो तथा मित्र से कोई स्वार्थ न होने पर भी आवश्यकता के समय उनकी सहायता करनी चाहिए।

*जीवन की हर एक डगर,*
*मित्र जरूरी पग पग पर।*

स्वस्थ रहें।

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Saturday, September 26, 2020

उत्साह

*उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।*
*सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥*
वाल्मीकि रामायण : किष्किन्धा काण्ड ; १/१२१

Enthusiasm is the power of men. Nothing is as powerful as enthusiasm. Nothing is difficult in this world for an enthusiastic person.

उत्साह पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। 

*तुम उत्साह कभी मत खोना,*
*हारेगा निश्चित कोरोना।*

स्वस्थ रहें।

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Friday, September 25, 2020

धैर्य

*अभिवर्षति योऽनुपालयन्विधिबीजानि विवेकवारिणा।*
*स सदा फलशालिनीं क्रियां शरदं लोक इव अधितिष्ठति॥*
किरातार्जुनीय : द्वितीय सर्ग।

जो कृत्य या करने योग्य कार्य रूपी बीजों को विवेक रूपी जल से धैर्य के साथ सींचता है वह मनुष्य फलदायी शरद ऋतु की भांति कर्म-साफल्य को प्राप्त करता है।

A person who irrigates the seeds of work or doable work with patience through water like prudence, attains success like a fruitful autumn.

*कर्म सींचे धैर्य रखकर,*
*जल विवेकवान हृदय से,*
*हम सफल निश्चित ही होंगें,*
*जीत जाएँ हार के भय से।*
स्वस्थ रहें।

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Thursday, September 24, 2020

अहम

*अहं कर्तेत्यहंमानमहाकृष्णा हि दन्शितः।*
*नाहं कर्तेति विश्वासामृतं पीत्वा सुखी भव।।*
अष्टावक्र गीता : अध्याय १, श्लोक ८।

*मैं कर्ता हूँ* इस अहं रूपी सर्प के दंश से हम सभी पीड़ित हैं अतः *मैं कर्ता नहीं हूँ* इस अमृत का पान करें एवम् सुखी हो जाएँ।

*I am the doer*, we all have been suffering from this ego, so take the nectar of *I am not the doer* and be happy.

अहम् को त्यागें।

*मुझे नहीं होगा कोरोना,*
*इसी अहम का मन में होना,*
*घातक है यह इसको छोड़ें,*
*घर की सीमा अभी न तोड़ें।*

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