Sunday, August 2, 2020

रक्षा बंधन

*येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।*
*तेन त्वाम् अनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।*

श्रावणी पूर्णिमा एवं रक्षाबन्धन के इस पुनीत पर्व पर आएँ हम सभी रक्षासूत्र धारण करें एवं जिस प्रकार दानवों के महाबली राजा बलि इस सूत्र में बाँधे गये थे, अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किये गये थे, उसी प्रकार हम भी इस सूत्र को धारण कर धर्म के लिए प्रतिबद्ध हों एवं निर्बल की रक्षा हेतु संकल्पित हों। ये रक्षा सूत्र स्थिर रहकर हमें अपना संकल्प स्मरण कराता रहे।

The mighty king of the Danavas *BALI* was tied in the sutra, that is, indulged in religion, similarly we too should commit to religion by wearing this sutra and be determined to protect the weak. These _Raksha Sutras_ should remain constant and remind us.

रक्षा बन्धन पर्व की अनंत शुभकामनाएँ।

*संकल्पित हों, संयमित हो,*
*स्वच्छ रहें तो सुरक्षित हों।*

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Wednesday, July 29, 2020

सुख

*बैर न बिग्रह आस न त्रासा।*
*सुखमय ताहि सदा सब आसा॥*
रामचरितमानस : उत्तरकाण्ड

जो मनुष्य न किसी से वैर करे, न लड़ाई-झगड़ा करे, न आशा रखे, न भय ही करे। उसके लिए सभी दिशाएँ सदा सुखमयी हैं। अर्थात् वह सदैव सुखी रहता है।

The man who does not hate anyone, fight or quarrel, does not expect and does not have fear. All directions for him are always pleasant. That is, he is always happy.

*अपनी सुरक्षा हाथ हमारे,*
*हम खुद समझें रिपु कैसे हारे,*
*घर में अपने स्वच्छ रहें हम,*
*अपनी शक्ति से स्वस्थ रहें हम।*
 
शुभ दिन हो।

🌺🌸💐🙏🏼

Monday, July 27, 2020

सुख

*परोपकरणं येषां जागर्ति हृद्ये  सताम्।*
*नश्यन्ति विपदस्तेषां संपदः स्यु पदे पदे॥*

जिन सज्जन व्यक्तियों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत है और जो अपना जीवन निर्बल लोगों की सहायता हेतु समर्पित कर देते हैं, उनके ऊपर आयी हुई सभी विपदाएँ नष्ट हो जाती हैं तथा उन्हें कदम कदम पर प्रसन्नता और संपत्ति की प्राप्ति होती है।

Those noble and righteous persons who have committed themselves to serve the meek and needy persons, the misfortune
and calamities befalling upon them disappear and they enjoy prosperity and happiness at every step.


*निर्बल निर्धन या निरूपाय,*
*हम ग़र उनके बनें सहाय,*
*ईश साथ हो जाते पल में,*
*धन वैभव भी सहज सुहाय।*

शुभ दिन हो।

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Sunday, July 26, 2020

राम भक्ति

*अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति,*
*नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।*

तुलसीदास को गोस्वामी तुलसीदास बनाने में उनकी पत्नी रत्नावली का इस दोहे का अर्थ
”मेरे इस हाड़ माँस के शरीर के प्रति जितनी तुम्हारी आसक्ति है, उसकी तुलना में तनिक भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन सँवर गया होता।"

गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर आएँ हम सब प्रभु भक्ति की लौ लगाएँ।

*राम भगति सब सुख कर जाना,*
*गोस्वामी भए तुलसी माना,*
*जिसने राम मरम पहचाना,*
*पड़ा नहीं उसको पछताना।*

शुभ दिन हो।

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Saturday, July 25, 2020

गुण अवगुण

*प्रावृषेन्यस्य मालिन्यं, दोषः कोऽभीष्टवर्षिण:।*
*शरदाऽभ्रस्य शुभ्रत्वं, वद  कुत्रोपयुज्यते।।*

कौन कहता है कि वर्षा ऋतु में बादलों का कालापन उनका एक दोष है? उनसे ही तो जलवृष्टि की कामना की जाती है। भला शरद ऋतु के शुभ्र (सफ़ेद) बादलों की क्या उपयोगिता है?

Who says that the dark blackness of the rain clouds is their defect? Every one expects rain from them only. On the other hand what is the usefulness of pure white clouds of the autumn season?

*क्यों रूप रंग का ध्यान करें,*
*गुण अवगुण का भान करें,*
*सत्य असत्य पहचान करें,*
*जाँचें परखें, सम्मान करें,*

शुभ दिन हो।

🌹🌸💐🙏🏼

Thursday, July 23, 2020

राम बिमुख

*मित्र करइ सत रिपु कै करनी।* 
*ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी॥*
*सब जगु ताहि अनलहु ते ताता।* 
*जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता॥*
रामचरितमानस : अरण्य काण्ड।

तुलसीदास जी ने राम विमुख अर्थात अपने कर्तव्य, धर्म एवं स्वयं से विमुख हो, के लिए लिखा है कि उसके मित्र भी सैकड़ों शत्रुओं के समान हो जाते हैं, देवनदी गंगा भी उसके लिए वैतरणी (यमपुरी की नदी) हो जाती है और ये समस्त संसार उनके लिए अग्नि से भी अधिक गरम (जलाने वाला) हो जाता है।

The one who deviates his duties, religion and self, his friends also become like hundreds of enemies, _Devanadi_ Ganga also becomes a _Vaitarni_ (river of Yampuri) for him and this whole world becomes even hotter (burning) for him.

*मित्र बनें अरु मित्र बनाएँ,*
*रिपु हो कोई क्यों घबराएँ,*
*साथ सुसंग सदा रखना है,*
*जीवन सुख से भरा बिताएँ।*

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Wednesday, July 22, 2020

फल

*अचोद्यमानापि यथा पुष्पाणि  च फलानि च।*
*स्वं कालं नाsतिवर्तन्ते तथा कर्म पुराकृतम्।*

बिना किसी आदेश या प्रेरणा के जिस प्रकार पुष्प और फल अपने निर्धारित समय पर वृक्षों में उत्पन्न हो जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा बहुत समय पूर्व किये हुए सत्कर्मों या दुष्कर्मों का फल भी समय आने पर स्वतः प्राप्त हो जाता है।

As flowers and fruits are grown on trees on their scheduled time without any order or inspiration, similarly, results of our deeds (good or bad) done even very long ago, automatically come to us when the time comes.

*कर्म करें हम जैसे जैसे,*
*फल पायेंगें वैसे वैसे,*
*अगर उछालें पत्थर नभ पर,*
*बरसें फूल कहो तब कैसे।*

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Tuesday, July 21, 2020

स्वार्थ

*कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।*
*उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्॥*

जब तक कार्य सिद्ध (स्वार्थ) नहीं होते हैं, तब तक लोग दूसरों की प्रशंसा (गुणगान) करते हैं। कार्य सिद्ध होने के बाद लोग दूसरे व्यक्ति को भूल जाते हैं। जिस प्रकार नदी पार करने के बाद नाव का कोई उपयोग नहीं रह जाता है।

As long as work is not done, people praise others. After the work is done, people forget the other person. Just as there is no use of boat after crossing the river.

*हम कृतज्ञता व्यक्त करें।,*
*नहीं कृतघ्नता वरण करें,*
*समय कठिन में बने सहायक,*
*उन्हें नहीं विस्मरण करें।*

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Monday, July 20, 2020

आचरण

*कन्दुको भित्तिनिक्षिप्त इव प्रतिफलन्मुहुः।*
*आपतत्यात्मनि प्रायो दोषोऽन्यस्य चिकीर्षतः॥*

जैसे दीवार पर फेंकी हुई गेंद झट से पलट कर फेंकने वाले की ओर आ जाती है, उसी प्रकार दूसरे के प्रति किया गया आचरण भी हमारे ही पास वापस आ जाता है।

Just as the ball thrown on the wall quickly turns to the thrower, similarly the behavior towards others also comes back to us.

*व्यवहार हमारा ऐसा हो,*
*स्वयं हमें पसंद जैसा हो,*
*भाव भरे हृदय में जैसे,*
*व्यवहार सदा ही वैसा हो।*

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Saturday, July 18, 2020

हर हर महादेव

साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम् का आठवाँ श्लोक :

*न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।*
*जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।*

मैं न जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो! मैं सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। 
हे प्रभो! जरावस्था व जन्म मृत्यु के दु:खों से संतप्त मुझ दु:खी की रक्षा करें। 
हे ईश्वर! मैं आपको नमन करता हूँ।

I don’t know Yoga, Japa (chanting of names), or Prayers. Still, I am bowing continuously and always to You. O Shambhu! O Prabhu! Save me from the sufferings of old age, rebirth, grief, sins, and troubles. I bow to You.

आज श्रावणी शिवरात्रि पर आएँ हम उस निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।

*शिव को भज लें, जानें हम,*
*शक्तिवान हैं शिव मानें हम,*
*हम संचित अपनी शक्ति करें,*
*रिपु प्रत्येक पहचानें हम।* 

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