Monday, July 20, 2020

आचरण

*कन्दुको भित्तिनिक्षिप्त इव प्रतिफलन्मुहुः।*
*आपतत्यात्मनि प्रायो दोषोऽन्यस्य चिकीर्षतः॥*

जैसे दीवार पर फेंकी हुई गेंद झट से पलट कर फेंकने वाले की ओर आ जाती है, उसी प्रकार दूसरे के प्रति किया गया आचरण भी हमारे ही पास वापस आ जाता है।

Just as the ball thrown on the wall quickly turns to the thrower, similarly the behavior towards others also comes back to us.

*व्यवहार हमारा ऐसा हो,*
*स्वयं हमें पसंद जैसा हो,*
*भाव भरे हृदय में जैसे,*
*व्यवहार सदा ही वैसा हो।*

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Saturday, July 18, 2020

हर हर महादेव

साकार व निराकार परमात्मा के द्वंद्व को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अंतिम काण्ड उत्तरकाण्ड में (आठ श्लोक के रुद्राष्टकम् स्तोत्र में) परम शिव की स्तुति करते हुए ईश्वर का जो व्याख्यान किया है उससे साकार व निराकार के द्वंद्व को हम जैसे मूढ़ भी आसानी से समझ कर उस परम पिता परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

रुद्राष्टकम् का आठवाँ श्लोक :

*न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।*
*जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।*

मैं न जप जानता हूँ, न तप और न ही पूजा। हे प्रभो! मैं सदा सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। 
हे प्रभो! जरावस्था व जन्म मृत्यु के दु:खों से संतप्त मुझ दु:खी की रक्षा करें। 
हे ईश्वर! मैं आपको नमन करता हूँ।

I don’t know Yoga, Japa (chanting of names), or Prayers. Still, I am bowing continuously and always to You. O Shambhu! O Prabhu! Save me from the sufferings of old age, rebirth, grief, sins, and troubles. I bow to You.

आज श्रावणी शिवरात्रि पर आएँ हम उस निराकार परमात्मा के साकार शिव रूप का ध्यान एवं स्तुति करें।

*शिव को भज लें, जानें हम,*
*शक्तिवान हैं शिव मानें हम,*
*हम संचित अपनी शक्ति करें,*
*रिपु प्रत्येक पहचानें हम।* 

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Friday, July 17, 2020

कामना

*अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।*
*मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥*

निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं। इस प्रकार जो प्राप्त है, सभी उससे आगे की कामना करते हैं।

A poor wishes for wealth, an animal wishes if it could speak. Man desires heaven while the deities living in heaven desire salvation. Thus everyone wishes beyond what he has.

*सदा आगे बढेंगें हम,*
*यही बस लक्ष्य लेंगें हम,*
*सहायक दूसरों के हित,*
*नयी आशा बनेंगें हम।*

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Thursday, July 16, 2020

प्रवृत्तियां

*ईर्ष्या लोभो मदः प्रीतिः क्रोधो भीतिश्च साहसं।*
*प्रवृत्तिच्छिद्रहेतूनि कार्ये सप्त बुधा जगुः।।*

ईर्ष्या, लोभ, अभिमान, मोह, क्रोध, भय, दुस्साहस, ये सात प्रवृत्तियां इस संसार में किसी भी कार्य के संपादन में बाधा और हानि पहुँचाती हैं, ऐसा चतुर और विद्वान् व्यक्तियों का कहना है।

Wise and learned men have proclaimed that in this World, Envy, Greed, Arrogance, Fascination, Anger, Fear and Over-confidence, all these seven traits are the main reason of causing impediments and defects in any work undertaken.

*ईर्ष्या त्यागें, मत लोभ करें,*
*न ही क्रोध, भय, अभिमान करें,*
*न मोह न अति विश्वास करें,*
*जग में पूरण सब काम करें।*

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Wednesday, July 15, 2020

अभाव

*कारुण्यं पुण्यानां कृतज्ञता पुरुष  चिह्नानां।*
*मायामोहमतीनां कृतघ्नता  नरकपातहेतूनां॥*

प्राणीमात्र के प्रति दया और कृतज्ञता की भावना तथा  धार्मिक प्रवृत्ति का होना, सज्जन व्यक्तियों की निशानी है। इसके विपरीत माया और मोह में लिप्त रहना और कृतघ्नता (परोपकार की भावना का अभाव) निश्चय ही लोगों के नरक में जाने का कारण होता है।

Compassion towards all living being and virtuous way of living, are the characteristics of a religious person. On the other hand inclination towards fraudulent behaviour, perplexity, and ingratitude are the reasons of people falling into the Hell.

*आएँ तनिक विचारें हम,*
*करुणा नहीं बिसारें हम,*
*है देवत्व हमारा गुण,*
*जीवन दीप सँवारें हम।*

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Tuesday, July 14, 2020

उत्तम जीवन

*आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन्*
      *को न जीवति मानवः,*
*परं परोपकारार्थं*
      *यो जीवति स जीवति।।*

इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता? परन्तु जो परोपकार अर्थात दूसरों के लिए निःस्वार्थ जीता है, वही श्रेष्ठ व उत्तम जीवन है।

Who in this world does not live for self? But he who lives benevolently means selfless for others, that life is the best life.

*कठिन समय है, रिपु है भारी,*
*करें मदद जो सम्भव सारी,*
*हम सब निज कर्तव्य निभाएँ,*
*भाव जगाएँ, पर उपकारी।*

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Monday, July 13, 2020

पथ

*अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।*
*नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।।*
गीता : अध्याय ४, श्लोक ४०।

विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से भटक जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिये न इस लोक में न ही परलोक में सुख है ।

He who lacks discrimination, is devoid of faith, and is possessed by doubt, loses the spiritual path. For the doubting soul there is not any happiness either in this world or the world beyond.

*संशय मन में क्यों रखना है,*
*हम ईश्वर की ही रचना है,*
*योग नियम जप तप करना है,*
*क्रोध कुसंग से नित बचना है।*

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Sunday, July 12, 2020

पुण्य पाप

*परहित सरिस धर्म नहिं भाई ,*
*पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।*
रामचरित मानस : उत्तर काण्ड।

दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई नीचता (पाप) नहीं है।

There is no religion like to do good for others and there is no degeneracy (sin) like hurting others.

*रहें स्वस्थ सारे, यही प्रार्थना हो,*
*हृदय में दया की भरी भावना हो,*

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Friday, July 10, 2020

दुर्वचन

*आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक।*
*कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक॥*

अगर गाली अथवा दुर्वचन के प्रतिउत्तर में गाली ही दी जाए, तो गालियों की संख्या एक से बढ़कर अनेक हो जाती है। संत कबीर दास कहते हैं कि यदि गाली को पलटा न जाए अर्थात गाली का प्रतिउत्तर गाली से न दिया जाए, तो वह गाली एक ही रहेगी।

If we abuse to answer the abuse, then only abusive language increases. But if abuse is not to be reversed or answered by abusing then it will not multiply.

*कहें नहीं कुछ भला नहीं जो,*
*कहें नहीं जो ठीक लगे तो।*

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उद्धार

*पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।*
*न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ४०।

हे पार्थ! स्वयं के उद्धार एवं उत्थान हेतु अर्थात् परम की प्राप्ति हेतु कर्म करने वाला मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही। 

Dear Arjuna, who strives for self-redemption (i.e., God-realization, there is no fall for him either here or hereafter, never meets with evil destiny. 

*हम अपना उत्थान करें,*
*औरों का भी ध्यान करें,*
*स्वहित जाँचें परहित देखें,*
*स्व का सब का मान करें।*

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