Monday, July 13, 2020

पथ

*अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।*
*नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।।*
गीता : अध्याय ४, श्लोक ४०।

विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से भटक जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिये न इस लोक में न ही परलोक में सुख है ।

He who lacks discrimination, is devoid of faith, and is possessed by doubt, loses the spiritual path. For the doubting soul there is not any happiness either in this world or the world beyond.

*संशय मन में क्यों रखना है,*
*हम ईश्वर की ही रचना है,*
*योग नियम जप तप करना है,*
*क्रोध कुसंग से नित बचना है।*

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Sunday, July 12, 2020

पुण्य पाप

*परहित सरिस धर्म नहिं भाई ,*
*पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।*
रामचरित मानस : उत्तर काण्ड।

दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को दुःख पहुँचाने के समान कोई नीचता (पाप) नहीं है।

There is no religion like to do good for others and there is no degeneracy (sin) like hurting others.

*रहें स्वस्थ सारे, यही प्रार्थना हो,*
*हृदय में दया की भरी भावना हो,*

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Friday, July 10, 2020

दुर्वचन

*आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक।*
*कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक॥*

अगर गाली अथवा दुर्वचन के प्रतिउत्तर में गाली ही दी जाए, तो गालियों की संख्या एक से बढ़कर अनेक हो जाती है। संत कबीर दास कहते हैं कि यदि गाली को पलटा न जाए अर्थात गाली का प्रतिउत्तर गाली से न दिया जाए, तो वह गाली एक ही रहेगी।

If we abuse to answer the abuse, then only abusive language increases. But if abuse is not to be reversed or answered by abusing then it will not multiply.

*कहें नहीं कुछ भला नहीं जो,*
*कहें नहीं जो ठीक लगे तो।*

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उद्धार

*पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।*
*न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ४०।

हे पार्थ! स्वयं के उद्धार एवं उत्थान हेतु अर्थात् परम की प्राप्ति हेतु कर्म करने वाला मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही। 

Dear Arjuna, who strives for self-redemption (i.e., God-realization, there is no fall for him either here or hereafter, never meets with evil destiny. 

*हम अपना उत्थान करें,*
*औरों का भी ध्यान करें,*
*स्वहित जाँचें परहित देखें,*
*स्व का सब का मान करें।*

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Wednesday, July 8, 2020

विचार

*आयुषः खण्डमादाय रविरस्तमयं गतः,*
*अहन्यहनि बोध्दव्यं किमेतेत् सुकृतं कृतम्।*

सूरज के अस्त होने पर हमारी आयु का एक दिन कम हो जाता है, यह जानते हुए हमें दिनभर के अपने किये हुए कार्य सद्कार्य पर विचार करना चाहिए।

Knowing that one day of age is reduced when the sun sets, we should consider the deeds good deeds done throughout the day.

*नित नित अच्छा करते जाएँ,*
*जीवन अपना सफल बनाएँ,*
*बाधाएँ आती हैं आएँ,*
*तनिक नहीं इनसे घबराएँ।*

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Tuesday, July 7, 2020

परमसत्ता

*यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:,*
*तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।*

गीता : अध्याय 18 श्लोक 78 

गीता का अंतिम श्लोक सम्पूर्ण सार बताता है:
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्री कृष्ण (परम सत्ता) हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन (पूर्ण समर्पित कर्ता) हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है।

The last verse of _GEETA_ tells the essence : Wherever there is Shree Krishna, the Lord of all Yog (Almighty) and wherever there is Arjun (a dedicated doer), the supreme archer, there will also certainly be unending opulence, victory, prosperity, and righteousness.

*हों अर्जुन सम पूर्ण समर्पित,*
*कृष्ण मिलेंगें है यह निश्चित।*

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Sunday, July 5, 2020

हर हर महादेव

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥  आप सभी को पवित्र श्रावण मास के प्रथम सोमवार की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

Saturday, July 4, 2020

Wednesday, July 1, 2020

भाव

*यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।*
*तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित:।।*
गीता अध्याय ८, श्लोक ६।

हे कुंती पुत्र अर्जुन! यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह उस भाव को ही प्राप्त होता है; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है।

Arjuna,thinking of whatever entity one leaves the body at the time of death, that and that alone one attains, being over absorbed in its thought.

*करुणा साहस मन में भर लें,*
*हर विपदा से हम टक्कर लें,*
*जीत हमारी निश्चित होगी,*
*यही भाव हम मन में भर लें।*

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Tuesday, June 30, 2020

क्षमा एवं धैर्य

*ऐश्वर्येऽपि क्षमा यस्य दारिद्र्येऽपि हितैषिता।*
*आपत्तावपि  धीरत्वं  दधतो  मर्त्यता कथं।।*

जो व्यक्ति ऐश्वर्यवान होते हुए भी क्षमाशील होते हैं, दरिद्र होते हुए भी अन्य व्यक्तियों की सहायता को सदैव तत्पर रहते हैं, तथा विपत्ति आने पर भी अपना धैर्य नहीं खोते हैं तो वे भला मृत्यु से क्यों भयभीत होंगे?

Those persons who in spite of being powerful and prosperous are also forgiving in nature, in spite of being poor are always ready to help others, and remain courageous and firm even while facing a calamity, why will they be afraid of their mortality?

*क्षमा करें व धैर्य भी धरें,*
*सदा दूसरों की सहायता करें।*

*देवशयनी एकादशी से आज चातुर्मास प्रारम्भ हो रहा है, शुभ उत्सवों एवं त्यौहारों की अगुवानी करें।*
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