*श्रूयताम धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवानुवर्यताम।*
*आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषाम न समाचरेत॥*
धर्म का भावार्थ सुनें एवं समझ कर जीवन में अनुपालन करें। दूसरों के साथ वैसा व्यवहार न करें जो स्वयं के लिए प्रतिकूल हो।
किन्तु इसी के साथ नीति कहती है,
*शठे शाठ्यम समाचरेत्*
दुष्टों के साथ दुष्टतापूर्ण व्यवहार उचित है।
We should follow the cases of religion after thorough analysis. We should not behave others in a way which we didn't like for us.
but it is also said that
_TIT for TAT_
*नहीं किसी का अहित करेंगें,*
*किन्तु न हम अन उचित सहेंगें।*
*स्वस्थ रहेंगें स्वस्थ रखेंगें,*
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