*पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।*
*न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति।।*
गीता : अध्याय ६, श्लोक ४०।
हे पार्थ! स्वयं के उद्धार एवं उत्थान हेतु अर्थात् परम की प्राप्ति हेतु कर्म करने वाला मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।
उस पुरुष का न तो इस लोक में नाश होता है और न परलोक में ही।
Dear Arjuna, who strives for self-redemption (i.e., God-realization, there is no fall for him either here or hereafter, never meets with evil destiny.
*हम अपना उत्थान करें,*
*औरों का भी ध्यान करें,*
*स्वहित जाँचें परहित देखें,*
*स्व का सब का मान करें।*
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